बच्चों के लिए क्यों जरूरी है जोखिम उठाना – Why kids need to take risks in life in Hindi

By Editorial Team|4 - 5 mins read| December 31, 2024

‘अगर आप कोई जोखिम नहीं उठाते तो आपको कोई पुरस्कार नहीं मिल सकता।’ क्रिस्टी रीडेक, लेखिका।

‘अरे, तुम कहां चढ़ गए? नीचे उतरों गिर जाओगे।’

‘ये बड़ों की चीजें हैं, इन्हें मत छुओ चोट लग जाएगी।’

न जाने दिन में कितनी बार आप अपने बच्चों को इस तरह की बातें कहते होंगे। भले आप बच्चे की भलाई के लिए ही ये सभी बातें उसे कह रहे हैं, लेकिन कभी सोचा है आपकी बात का तुरंत बच्चे पर क्या असर होगा? आपकी बात सुनते ही उसे लगेगा कि उसने कुछ गलत कर दिया जा उसे नहीं करना चाहिए।

भले आप दो साल के बच्चे को पेड़ पर चढ़ा नहीं देखना चाहते, लेकिन क्या आप अपनी निगरानी में भी बच्चे को जोखिम उठाने नहीं दे सकते? आप मानें या न मानें, बच्चे जब आपकी अनुमति और देखरेख में छोटा-सा भी जोखिम उठाते हैं, तो वे इससे शारीरिक और मानसिक रूप से और भी मजबूत हो जाते हैं। वे तेजी से विकास करते हैं और बहुत कुछ अपने अनुभवों से सीखते हैं।

माता-पिता होने के नाते यह बिल्कुल सही सोच है कि आपके बच्चे की सुरक्षा से कोई समझौता न किया जाए। लेकिन जहां बच्चों को सीखाने की बात आती है तो उनके लिए जोखिम उठाना भी बेहद जरूरी हो जाता है। अगर सभी यही मान लेंगे कि बच्चा स्विमिंग पूल में जाते ही डूब जाएगा तो फिर तैराकी तो सीखी ही नहीं जा सकती। बच्चों की सुरक्षा आपकी जिम्मेदारी है, इसीलिए आप बच्चे को अपनी देख-रेख में उनकी क्षमता के अनुसार छोटे-मोटे जोखिम तो लेने दे ही सकते हैं।

बच्चों के लिए क्यों जरूरी है जोखिम उठाना

1. बच्चे शारीरिक तौर पर मजबूत होते हैं

छोटे बच्चों को मालिश, संतुलित भोजन के अलावा शारीरिक गतिविधियां भी चाहिए, जिनसे उनकी मांसपेशियां और भी मजबूत हों। अगर आप अपने बच्चों को जोखिम उठाते हुए नहीं देखना चाहते तो आप यह भी समझ लीजिए कि आपका बच्चा शारीरिक तौर पर कभी भी मजबूत और तंदरुस्त रह ही नहीं सकता। क्योंकि जैसे कि आपका नवजात शिशु खड़ा होने की कोशिश करेगा आप उसे जोखिम को देखते हुए तुरंत बैठा या लेटा देंगे। जैसे ही वह दौड़ना शुरू करेगा आप उसे रोक देंगे। चलना, उठना, बैठना, दौड़ना या कूदना ये सब कुछ ऐसी गतिविधियां हैं, जिनसे बच्चों की सेहत बनी रहती है और उनकी हड्डियां, मांसपेशियां, दिल और फेफड़े सभी मजबूत होते हैं।

2. मानसिक सेहत भी बढ़ती है

बच्चे गिरते हैं, उन्हें चोट लगती है और फिर वे दोबारा खड़े होकर अगले प्रयास की तैयारी करते हैं। बच्चों के जोखिम उठाने के बाद उनकी सफलता उनमें आत्म-विश्वास को भर देती है। छोटे बच्चे पहले जहां अपने माता-पिता की उंगली पकड़ कर चलते हैं और फिर धीरे-धीरे खुद से चलना शुरू कर देते हैं, तो इससे उन्हें आत्म-निर्भर होने का एहसास होता है। हर व्यक्ति फिर चाहे वह बड़ा हो या छोटा स्वतंत्र होकर खुद को मानसिक तौर पर भी काफी तरोताजा महसूस करता है। यह भी एक बड़ी वजह है कि आपको अपने बच्चों को कुछ जोखिमों को उठाने देना चाहिए।

3. बच्चे भावनात्मक रूप से भी मजबूत होते हैं

जोखिम उठाने के साथ ही बच्चे अपने डर पर काबू पाना भी सीखते हैं। जिस चीज के लिए माता-पिता अपने बच्चे को मना करते हैं, उसे करने से पहले ही बच्चों के दिमाग में एक डर बैठ जाता है कि क्या हुआ अगर मैं गिर गया या मुझे चोट लग गई। लेकिन जोखिम उठाते हुए बच्चे अपने इसी डर को भी हरा पाने में समर्थ बनते हैं। इसके अलावा मुश्किल काम को करने के वक्त होने वाली बेचैनी बच्चों में भी साफ देखी जा सकती है। पर जब बच्चे खुद से जोखिम उठाते हैं तो वे इस बेचैनी और काम में सफलता मिलने के बाद जीत पर भी नियंत्रण करना सीखते हैं।

4. बच्चे अपनी गलतियों से बहुत कुछ सीख सकते हैं

अगर आपका तीन साल का बच्चा पहली या दूसरी सीढ़ी से कूदना चाहता है तो ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? वह गिर जाएगा? लेकिन अगर आपने बच्चे को दूसरी की जगह पहली सीढ़ी से कूदने दिया तो वह गिर कर भी आत्म-विश्वास से भर जाएगा। पहली बार गिरने के बाद भी वह समझ जाएगा कि अगली बार उसे कूदने के समय क्या गलती नहीं करनी चाहिए। ऐसे ही छोटे-छोटे जोखिम बच्चों को जीवनभर के लिए बड़ी से बड़ी सीख दे जाते हैं।

5. जोखिम के समय बच्चे बेहतरीन सामाजिक कौशल का प्रदर्शन करते हैं

अगर कोई बच्चा कभी भी पहली बार कोई जोखिम भरा काम करता है तो आपने देखा है उसकी प्रतिक्रिया कैसे होती। बच्चा शुरू में तो जोखिम को आंके बिना आगे बढ़ जाता है, लेकिन फिर बाद में जरूरत पड़ने पर वह अपने आस-पास वालों से मदद मांगने में भी पीछे नहीं हटता। कई बार जोखिम बच्चे दूसरों की संगति में रहते हुए भी लेते हैं। ऐसे में बच्चे जोखिम उठाने के दौरान दोस्त बनाने के गुर भी सीखते हैं, वे एक-दूसरे की मदद को भी तैयार रहते हैं।

परीक्षाओं में फेल हो जाने के डर से क्या बच्चों को पढ़ाना छुड़वा दिया जाता है। परीक्षाओं में भी हार-जीत का जोखिम है। जैसे बच्चे की परीक्षाओं में हम उनका साथ देते हैं, वैसे ही बच्चे के जीवन में छोटी-छोटी परीक्षाओं और जोखिम में भी हमें उनके साथ रहते हुए उन्हें खुद से इन चुनौतियों का सामना करने देना चाहिए।

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