नवजात शिशुओं के माता-पिता काफी इत्मेनाना से रहते हैं कि अभी तो उनका बच्चा बेहद छोटा है। अभी कहां वह पलटना जानता है। पर तीन से चार माह का बच्चा भी पेट से पीठ के बल पलट सकता है। बच्चे का पलटना दरअसल उसके शारीरिक और मानसिक विकास को भी दर्शाता है। आइए एक नजर डालते है। बच्चे के पलटने के बारे में और अधिक जानकारियों पर।
बच्चे खुद से जो सबसे पहली कोई शारीरिक गतिविधि करते हैं तो वह है, पलटना। हम जानते हैं कि आप अपने बच्चे को घुटनों के बल चलते हुए देखना चाहते हैं, लेकिन उससे भी पहले बच्चे खुद से पलटना सीखते हैं। अक्सर 3 से 4 माह की आयु में पहली बार बच्चा पलटना शुरू करता है। कुछ बच्चे इसमें भी 6 से 7 महीने का समय लगा देते हैं। पलटना वैसे तो अपने आप में कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं मानी जाती। लेकिन पलटने के साथ ही बच्चा बैठना, घुटनों के बल चलना और फिर पैरों पर चलना सीखता है।
दरअसल नवजात शिशु को जिस भी अवस्था में लेटाया जाए, उसकी दुनिया उसे वैसी ही दिखती है, लेकिन पलटने के साथ वह अपनी दुनिया को अपने हिसाब से देखना भी शुरू करता है, और जब बच्चा पीट से पेट के बल पर पलटता है तो उसे चीजें सीधी और अपने अधिक पास नजर आती हैं। यहीं से शुरूआता होती है, उसके घुटनों के बल चलने की।
शारीरिक विकास का है संकेत:
बच्चा जब अपने गोल-मटोल से शरीर को पलटने का प्रयास करता है और उसमें सफल होता है, तो यह उसके लिए एक बहुत बड़ा शारीरिक बदलाव भी है। क्योंकि इसी के साथ धीरे-धीरे बच्चा का अपने शरीर, खासकर अपनी मांसपेशियों, गर्दन और सिर पर नियंत्रण भी बढ़ने लगता है। शरीर के विभिन्न हिस्सों में तालमेल होने की वजह से ही हम अपने शरीर को मनचाही अवस्था में घूमा सकते हैं।
अपने बच्चे को पलटना सिखाने के लिए आप उसे ज्यादा से ज्यादा पेट के बल लेटा सकते हैं। इसमें बच्चा अपने सिर और गर्दन को उठाते हुए अपनी बाजुओं से खुद को हल्का-सा धक्का देना सीखते हैं। यह छोटा सा धक्का बच्चे की गर्दन, कंधों और बाजुओं की मांसपेशियों को और मजबूत बनने में भी मददगार होता है। आपने छोटे बच्चों को अपनी टांगे और बाजुएं ऐसे चलाते हुए देखा है जैसे कि वे तैराकी कर रहे हों? यह सब बच्चे अपनी मांसपेशियों के मजबूत होने के बाद ही कर सकते हैं या कहें कि इन सब चीजों से वे अपनी मांसपेशियों को मजबूत करते हैं, जिससे पहले तो वे एक करवट से दूसरी करवट और फिर पीठ से पेट और पेट से पीट तक भी पलट सकते हैं।
कब शुरू करते हैं बच्चे पलटना – When Do Babies Start to Roll Over?
कुछ बच्चे 3 से 4 माह के भीतर ही पलटना शुरू कर देते हैं, जबकि कुछ बच्चे 6 से 7 महीने में पलटी मारने लगते हैं। ज्यादातर मामलों में बच्चा पहले पेट से पीठ की तरफ पलटना सीखता है और उसके लगभग 1 माह के बाद वह इससे विपरीत पलटता है। पीठ से पेट की तरफ पलटने के लिए अधिक समय इसीलिए लगता है, क्योंकि इसमें मांसपेशियों की अधिक ताकत लगती है और शरीर के विभिन्न हिस्सों में तालमेल भी अधिक बनाना पड़ता है।
ऐसा नहीं है कि एकाएक बच्चा पलट कर आपको हैरत में डाल देगा। बच्चे अपनी जरूरत को बताने के लिए धीरे-धीरे करवट बदलना सीखते हैं। जैसे कि अगर उनके कपड़े गीले हो गए हैं तो वे पीठ के बल से करवट पर आ जाएंगे। इस समय आपको बच्चे का ऊंची जगह, जैसे कि डायपर टेबल या बेड पर पर ज्यादा ध्यान रखना होगा. क्योंकि आपकी नजर हटते ही बच्चा कभी भी पलट सकता है।
कई बच्चे तो अपनी इच्छा से पीठ से पेट और फिर वापिस पेट से पीठ तक पलटना सीख जाते हैं, वे कई बार एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचने के लिए भी पलटी मारने का काम करते हैं। अगर 7 माह तक भी आपका बच्चा पलट नहीं पाता तो एक बार इस बारे में आप बच्चे के डॉक्टर से जरूर परामर्श लें।
कैसे सुरक्षित रखें अपने बच्चे को:
जब बच्चे पलटी मारना सीख जाते हैं तो उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी माता-पिता के लिए और भी बढ़ जाती है। आप बच्चे के आस-पास जितनी भी चीजें रखें कि फिर चाहे वह आपका लैपटॉप और उसका चार्जर हो, मोबाइल फोन हो, रसोई का कोई तेज धार वाला सामान हो या फिर कांच का नाजुक सामान हो, बच्चा इन सभी चीजों की तरफ तेजी से आकर्षित होगा और उसे सभी चीजों को अपने हाथ से छुने की जल्दी भी होगी।
- बच्चे के आस-पास से विभिन्न तारों को हटाएं।
- बच्चे के आस-पास इलेक्ट्रॉनिक उपकरण नहीं होने चाहिए।
- बच्चे को कोशिश करें कि बेड रेल लगाकर ही बेड में या फिर उसके क्रिब में सुलाएं।
- बच्चे को सीढि़यों से दूर रखें।
- जब भी बच्चा जमीन या कारपेट पर खेल रहा हो, तो उसके आस-पास मोटा कंबल या तकिए जरूर लगा कर रखें।
- फर्नीचर या दूसरी भारी चीजों को बच्चे से दूर रखें।
- घर की दीवारों पर फोम गार्ड लगवा सकते हैं, ताकि पलटने पर भी बच्चे को चोट न लगे।
जब बच्चा पलटना शुरू कर देता है तो यहां माता-पिता की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। सिर्फ बच्चे के जागते समय ही नहीं, बल्कि उसके सोते समय भी माता-पिता को उस पर पूरी नजर रखनी चाहिए और उसे सुरक्षित माहौल देने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन इस बात का भी ध्यान दें कि सोते समय बच्चे के आस-पास उसके खिलौने, तकिये और कंबल आदि इतने भी न हों जाएं कि बच्चे का दम घूटने लगे।