बच्चों के साथ माता-पिता का रिश्ता अगर मधुर बनाना है तो इसमें आपकी मदद आपके अपने परिवार के कुछ रीत-रिवाज भी कर सकते हैं। हर घर के अपने कुछ नियम-कानून या कायदे होते हैं, जो जरूरी नहीं कि हमेशा ही बच्चों की मर्जी के खिलाफ बनाए जाएं। बल्कि कुछ कायदे या रीत-रिवाज ऐसे भी बनाए जा सकते हैं, जिनसे पूरा परिवार एक-दूसरे से जुड़ा हुआ महसूस करे। (Using Family Traditions to Build Bonds that Last in Hindi)
बच्चों से बातचीत करने के लिए हम कई बहाने ढूंढ़ते हैं। लेकिन आप चाहें तो उनसे बातचीत करने के लिए बहानों की जगह कोई नियम बना सकते हैं, जिसमें पूरा परिवार एक साथ बैठे और किसी खास विषय पर बातचीत की जाए। इसके अलावा जैसे परंपराएं हमें कुछ न कुछ सीखाती हैं, वैसे ही पारिवारिक रीत-रिवाजों के माध्यम से भी आप अपने बच्चों को काफी कुछ सीखा सकते हैं और तो और उनके करीब भी आ सकते हैं। आइए एक नजर डालते हैं कुछ ऐसे ही पारिवारिक रीत-रिवाजों पर जो माता-पिता और बच्चों के संबंधों को और भी मधुर बनाने में मदद कर रहे हैं।
कुछ अनूठे पारिवारिक रीत-रिवाज
1. किसी एक दिन महिलाओं को भी मिले छुट्टी
हमारे घर में मेरी सासू मां ने एक नियम बनाया था कि हर करवाचैथ के दिन जब घर की औरतें व्रत करेंगी तो घर पर खाना बनाने की जिम्मेदारी पुरुषों की होगी। जब शादी के बाद में इस घर में आई तो यह नियम या रीत मुझे बहुत अजीब लगती थी। लेकिन मेरी सासू मां ने इस रीत को बहुत पहले ही अपना लिया था, जब मेरे पति और उनके भाई छोटे थे। तब से वे मेरे ससुर जी की मदद किया करते थे। इससे उनमें पूरा दिन रसोई में रहने वाली घर की औरतों के प्रति सम्मान भी बढ़ गया।
2. फिल्मी फ्राइडे
ऐसे ही कुछ और भी रीत-रिवाज हैं, जिनसे आप अपने बच्चों को न सिर्फ कुछ सीखा सकते हैं, बल्कि उनके साथ अपने रिश्तों को भी बेहतर बना सकते हैं। जैसे कि हम दोनों पति-पत्नी नौकरी करते हैं और शुक्रवार तक पूरा सप्ताह काफी व्यस्त जाता है तो ऐसे में हम शुक्रवार की रात को अपने-अपने काम से लौट कर एक-साथ फिल्म का मजा लेते हैं। इसे हमने अपने घर में ‘फ्राइडे फैमिली फिल्म’ का नाम दिया है। पूरा सप्ताह भले हमारे और बच्चों के पास एक-साथ बैठने का वक्त भले कम होता है, लेकिन शुक्रवार की फिल्म के दौरान हम सभी एक-साथ दो से तीन घंटे बिताते हैं।
3. बीमार व्यक्ति को सभी दें अपना कुछ वक्त
मिताली जो मेरी पड़ोसन है, उनके घर का एक रिवाज मुझे बहुत पसंद आया, जिसे अब मेरे घर पर भी हम लोग मानते हैं। मिताली के घर अगर कोई बीमार हो जाए तो सिर्फ मां ही नहीं, बल्कि पूरा परिवार दो-दो घंटे के लिए बीमार की सेवा करता है। इससे बीमार व्यक्ति को अकेले नहीं बैठना पड़ता और घर के किसी एक सदस्य खासकर महिला पर पूरी जिम्मेदारी नहीं आती। साथ ही बच्चों में भी एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति पैदा होती है।
4. खाने पर हों सिर्फ सकारात्मक बातें
अगर पूरा परिवार एक साथ बैठा है तो वहां कई तरह की बातें की जाती हैं, लेकिन हमारे घर पर हम पूरा ध्यान इस बात का रखते हैं कि खाने की मेज पर सिर्फ सकारात्मक या किसी की उपलब्धि के बारे में ही बात की जाए। इससे न सिर्फ खाना खाने में मजा आता है, बल्कि बच्चों को हम ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहित भी करते हैं।
5. संकेतों की भाषा का प्रयोग करना
दूसरों के सामने कई बार बच्चे अपनी बात आप तक पहुंचाने में असमर्थ होते हैं तो ऐसे में आप अपने बच्चों से संकेतों की भाषा के माध्यम से बातचीत कर सकते हैं। जैसे कि अगर कोई बच्चा किसी की बात से बोर हो रहा हो तो वह सबके बीच में अपनी इस बात को न कह कर, संकेतों के माध्यम से आपको बता सकता है, ताकि इससे दूसरों का सम्मान भी बना रहे।
6. सोने के वक्त को बनाएं खास
आपने बच्चे को सोने को कह दिया और वह चुपचाप जाकर सो गया। क्या वाकई ऐसा होता है? हमारे घर में नहीं होता था, जब हम छोटे थे। जब तक मम्मी या पापा नहीं आ जाते, तब तक हमें नींद ही नहीं आती थी। इसीलिए हमारे मम्मी या पापा हमें सोने के लिए लेकर जाते और उसके बाद हमें आखों को बंद कर उनकी बातों को ध्यान से सुनने को कहते। वे कभी हमें परियों के देश में ले जाते तो कभी फूलों के बाग-बगीचों में और सोने से पहले वे हमें बताते कि वे हमें कितना प्यार करते हैं। अपने माता-पिता की इस अनूठी परंपरा को मैंने अपने बच्चों के साथ भी अपनाया और देखा कि मेरे दोनों बच्चे सोने से पहले मेरा इंतजार करते हैं और जब मैं उन्हें बताती हूं कि मैं उन्हें कितना प्यार करती हूं तो बदले में वे भी मुझे ‘आई लव यू मम्मी’ भी कहते हैं।
7. बर्थडे की जगह पूरा सप्ताह होता है खास
मेरी बहन की एक बेटी है जो 6 साल की है। लेकिन उसके पहले बर्थडे के साथ ही उसके परिवार ने सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि पूरे सप्ताह को खास बनाने की परंपरा शुरू की थी। यह विचार उनके दिमाग में वेलेंटाइन डे वीक से आया, जहां वेलेंटाइन डे से 7 दिन पहले से ही रोज कोई न कोई दिन मनाया जाता है। ऐसा ही उन्होंने भी किया, जिसमें वे हर रोज कोई एक तोहफा अपनी बेटी को देते हैं और उसके जन्मदिन को और भी यादगार बनाते हैं।
8. बधाइयों की किताब
जब हम किसी आर्ट गैलेरी या किसी नए स्टोर में जाते हैं तो वहां जैसे विजिटर्स बुक होती है, ठीक ऐसी ही बधइयों की किताब को तैयार करने का चलन भी इन दिनों परिवारों में काफी जोरों पर है। अभी हाल में हुई एक शादी पर दूल्हा-दुल्हन की तस्वीरों से सजी एक किताब सभी मेहमानों के बीच में घूम रही थी, जिसमें सभी दूल्हा-दुल्हन को ढेरों आशीर्वाद और बधाइयां दे रहते थे। मुझे भी यह तरीका बहुत पसंद आया, जिसमें शादी के शोर-शराबे के बाद आराम से परिवार के सदस्य मेहमानों की बधाइयों को भी पढ़ सकते हैं और जिंदगी भर के लिए अपने साथ संजोए रख सकते हैं। कुछ ऐसा ही हम अपने बच्चे के जन्मदिन या अन्य महत्वपूर्ण कार्यक्रमों पर भी कर सकते हैं।
9. मैं अभारी हूं
मेरी दोस्त प्रतिक्षा अपने दोनों बच्चों को सोने के समय रोज एक ही प्रश्न करती है, कि आज उसके बच्चे किसके प्रति अभारी हैं और क्यों? जब बच्चे छोटे थे, तब वे अपने बच्चों को सही शब्दों को चुनने में मदद करती थी, लेकिन आज जब उसके बच्चे इन शब्दों का मतलब समझते हैं तब वे खुद से बताते हैं कि वे किसके लिए अभार व्यक्त करना चाहते हैं। ‘मैं अभारी हूं’ कुछ ऐसे शब्द हैं, जो हमें विनम्र और दूसरों के प्रति सम्मान व्यक्त करने में मदद करते हैं।
बच्चों से बातचीत शुरू करनी हो या उन्हें कुछ सीखाना हो, पारिवारिक परंपाराएं या रीत-रिवाज इसमें काफी मदद कर सकते हैं। तो आप भी कोई ऐसे ही नियम या रिवाजों को बनाएं, जिनसे आप भी अपने बच्चों के और भी करीब आ सकते हैं।