बच्चे के मानसिक और मनोभावों पर सबसे गहरा असर होता है, उसके माता-पिता के साथ बिताए गए वक्त का। कोई बच्चा बहुत खुश रहता है या फिर वह सभी चीजों में आगे है तो इसका श्रेय उसके माता-पिता और बच्चे को दिए गए समय के लिए जाता है। वहीं रोते हुए या उदास बच्चे को देखकर यह कहा जा सकता है कि माता-पिता ने इस बच्चे को अपना समय नहीं या कम से कम दिया है। पूरे दिन में बच्चे को आप जितना मर्जी समय दे लें, लेकिन ये 9 मिनट उनके लिए बहुत खास होते हैं। आइए जानते हैं, 9 सबसे महत्वपूर्ण मिनटों के बारे में जो बच्चे को दूसरों से बेहतर बनाते हैं।
माता-पिता होने के नाते हम सभी अपने बच्चे को दूसरों से बेहतर जिंदगी देना चाहते हैं। जिंदगी में कोई भी बिल्कुल सही नहीं है, न तो माता-पिता न ही बच्चे। सभी में बेहतरी की गुंजाइश बाकी है। लेकिन आज हम सभी के पास व्यस्त दिनचर्या में अपने बच्चों को देने के लिए वक्त भी कम हो गया है। लेकिन ऐसे में भी बाल विशेषज्ञ कहते हैं कि आप भले बच्चे को कम वक्त दें, लेकिन उनके साथ जो भी वक्त बिताएं वो बहुत बेहतर होना चाहिए।
यूरोप के एक साइकोलॉजिस्ट और न्यूरोसाइंटिस्ट जैक पैनक्सेप ने अपनी एक थ्योरी अफेक्टिव न्यूरोसाइंस में भावों के न्यूरल मकैनिज्म के बारे में बताया था कि कैसे हमारे बच्चों की दिनचर्या को हम उनके दिन के 9 सबसे अहम मिनटों में बांट सकते हैं। उन्होंने अपने पेपर्स में यह भी बताया कि माता-पिता की भूमिका इन मिनटों में कैसे भूमिका निभाती है।
बच्चे के दिन के सबसे अहम 9 मिनट
डॉक्टर पेनक्सेप के मुताबिक बच्चों के पूरे दिन के 9 मिनटों को 3 अलग-अलग समय में बांटा गया है।
- बच्चे के सुबह जागने के बाद के पहले 3 मिनट
- बच्चे के स्कूल से घर लौटने के बाद के 3 मिनट
- सोने से पहले के आखिरी 3 मिनट
ये 9 मिनट बच्चे की दिनचर्या में सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। जिस समय आप बच्चे के भावुक और मानसिक दोनों आयामों पर काम कर सकते हैं। वैसे तो आप अक्सर अपने बच्चे से किसी भी समय कुछ भी बात कर सकते हैं, लेकिन यह समय बेहद खास है, जिसके लिए आपको पहले से ही तैयार रहना चाहिए।
कैसी बातचीत रखें अपने बच्चे से इन 9 खास मिनटों में
सुबह उठने के बाद
इस समय लगभग सभी छोटे बच्चे अपनी रात की नींद पूरी कर के उठते हैं। खासकर अगर वे किसी स्कूल में पढ़ते हैं तो आपको बच्चे को स्कूल के लिए तैयार करने के लिए इस समय तक जगा देना चाहिए। सबसे पहले तो आप अपने बच्चे को बिना कोई तनाव दिए उसे सुबह उठाएं और उन्हें अच्छा महसूस कराएं।
इसके साथ आप बच्चे को बिस्तर में या फिर अपनी गोद में बिठा कर कुछ सवाल पूछ कर अपनी बातचीत को आगे बढ़ा सकते हैं, जैसे कि:
- आपको कब सबसे अच्छा महसूस होता है?
- आपको कब सबसे ज्यादा गुस्सा आता है?
- आपके दोस्त के पास एक नया खिलौना आया है और जब आपने उससे देखने के लिए मांगा तो उसने मना कर दिया। अब आप क्या करोगे?
- आप अब खुद से क्या-क्या काम कर सकते हैं, जो आप पहले नहीं कर सकते थे?
- आपको अपने बारे में तीन अच्छी चीजें बतानी हैं।
- क्या क्या ज्यादा पसंद है? संगीत, रंग भरना या नाचना?
- आपको सबसे ज्यादा कौन सी छुट्टियां पसंद आईं और क्यों?
इस प्रकार के आप और भी सवाल अपने बच्चे से बातचीत के दौरान पूछ सकते हैं, इससे न सिर्फ वे तर्क-विर्तक के बारे में समझते हैं, बल्कि आप उनके भावों से भी रू-ब-रू हो पाते हैं।
दोपहर को स्कूल से लौटने के बाद
जहां डॉ. पेनक्सेप स्कूल से लौटने के बाद के तीन मिनटों को काफी तवज्जो देते हैं, वहीं आमतौर पर जरूरी नहीं है कि इस समय माता-पिता अपने बच्चे को घर पर लौटने के बाद मिले हीं। अगर आप इस समय अपने बच्चे से नहीं मिल पाते तो आप जब भी बच्चे से दोबारा मिलते हैं, उस समय को अपने बच्चे के लिए सुनिश्चित कर लें। अगर आपको सही समय घर पर नहीं मिल पाता, तो भी आप इस समय को बच्चे को उसके डे-केयर या अन्य किसी क्लास से लाने के दौरान इस्तेमाल कर सकते हैं। जगह जरूरी नहीं है, बल्कि बच्चे का आपसे मिलकर आपके साथ बातचीत करना जरूरी है। इस समय बच्चे से बातचीत के दौरान आप उससे उसकी दिनचर्या से संबंधित सवाल भी पूछ सकते हैं, जैसे कि:
- आज का दिन आपका कैसा रहा?
- आज आपने क्या अच्छा काम किया?
- आप अब आगे क्या करना चाहते हैं?
- इलके अलावा आप कुछ सामान्य प्रश्न भी पूछ सकते हैं। जैसे कि
- आपको क्या चीज दूसरे बच्चों से अलग बनाती है?
- आप किस वक्त बहुत शर्मिंदा महसूस कर रहे थे?
बच्चे खुद से बातचीत कम ही शुरू करते हैं। ऐसे में जरूरी है कि आप उनमें सामाजिक और भावनात्मक कौशल को बढ़ाने के लिए खुद उनसे सवाल करें। इससे आपका और बच्चे का रिश्ता भी बेहतर बनेगा, क्योंकि कहीं न कहीं बच्चे को समझ में आएगा कि आपके व्यस्त होने के बावजूद बच्चा आपके लिए कितना अहम है।
रात को सोने से पहले
बिस्तर पर लेटने और सोने के बीच का वक्त ऐसा होता है, जब बच्चे अपने पूरे दिन का आंकलन करते हैं। अगर इस समय का सही उपयोग किया जाए तो बच्चों की भावनाओं को सही दिशा दी जा सकती है। वैसे भी सोने से पहले अगर बच्चा अपने माता-पिता को साथ मेंपाता है तो वह खुद को अधिक सुरक्षित महसूस करता है। साथ ही इस समय बच्चे अपने दिमाग में आने वाली सभी बातों को खुलकर भी बताते हैं।
इस समय माता-पिता को चाहिए कि वे स्कूल या अन्य किसी क्लास की बातचीत न कर, बच्चे से हल्की-फुल्की चर्चा किसी अन्य विषय पर करें। इस समय अगर आप सवाल न भी पूछें तो भी चलेगा, जरूरी है बच्चे को सुनना। हां, अगर बच्चा खुद से बातचीत न कर पा रहा हो तो आप चाहें तो इस समय के लिए एक गतिविधि तैयार कर लें। जैसे कि कुछ चिट बना लें और उन पर बच्चे के लिए एक-एक सवाल लिखा हो, जैसे कि:
- आप क्या बनना पसंद करोगे? किश्ती या हवाई जहाज?
- आपको नींद में अब तक सबसे अजीब क्या सपना आया है?
- आपको क्या खेलना पसंद है और क्यों?
- आपने हाल-फिल्हाल में सबसे बेहद क्या काम किया है?
बच्चे कितने भी छोटे हों या बड़े जिन बच्चों का शुरुआत में ही अपने माता-पिता, अध्यापकों या परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अच्छा रिश्ता बन जाता है वे खुद-ब-खुद दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना, दूसरों की मदद करना और स्कूल में पढ़ाई पर ध्यान देना भी सीख जाते हैं। इसीलिए जरूरी है कि बच्चों को वक्त दिया जाए, फिर भले वह उनके पूरे दिन के यह प्रभावी 9 मिनट ही क्यों न हों।