माता-पिता अपनी यात्रा में अक्सर भूल जाते हैं कि कभी वे भी बच्चे थे। भूल जाते हैं कि किसी भी काम के लिए जब हमारी तुलना दूसरे बच्चे से की जाती थी तो हमें कैसा लगता था। बच्चे के खराब प्रदर्शन के लिए आपअसानी से उसकी तुलना दूसरों से कर देते हैं। लेकिन इससे बच्चे में नकारात्मकता के अलावा और कुछ नहीं आता। बच्चे की बेहतर परवरिश के लिए बहुत जरूरी है कि आप उसकी तुलना दूसरों से न करें।
अपने बच्चे को पहले दिन हाथ में लेने के साथ ही माता-पिता उसकी तुलना दूसरे बच्चों से करने लगते हैं। मेरा बच्चा दूसरे से गोरा या काला है, इसका वनज दूसरे बच्चे से कम या ज्यादा है, इसके नैन-नक्श अच्छे या बुरे हैं, उसका बच्चा तो 6 महीने में बैठने लगा था, मेरा बच्चा तो चल ही नहीं पा रहा, इसे कोई काम ही नहीं आता, इसके अंक इतने कम आते हैं आदि-आदि। बच्चे के शारीरिक, मानसिक या अन्य विकास के लिए विशेषज्ञों की ओर से तय किए गए मानदंड अच्छे हैं। वे हमें हमारे बच्चे के विकास के बारे में बताते हैं कि वे ठीक से बढ़ रहा है या नहीं। सही परिणाम न होने पर बच्चे की अच्छे से देख-रेख की जा सकती है।
पर मुश्किल तब आती है जब हर बार बच्चे को किसी न किसी कसौटी पर खरा उतरना होता है। हर बात में माता-पिता बच्चे के लिए कोई न कोई परीक्षा रख देते हैं। जैसे कि तुमने अभी तक अपना काम नहीं किया? तुम्हारी बहन ने तो पूरा खत्म भी कर लिया या तुम्हारे साथ ही हमेशा कोई न कोई परेशानी क्यूं होती है? तुम्हारा दोस्त को तो नहीं होती। तुम जल्दी लिखते क्यों नहीं हो? शर्मा जी के बेटे को देखों वह तुमसे छोटा है, लेकिन कितने अच्छे नंबर लाता है। हम सब जाने-अनजाने अपने बच्चे की तुलना या मुकाबला दूसरों से करने लगते हैं।
तुलना के दुष्परिणाम:
1. दूसरे के प्रति ईर्ष्या पैदा होना
तुलना करने के बेहद गंभीर प्रभाव के बारे में कनाडा की एक लेखिका और मोटिवेशनल स्पीकर डेनियला लापोर्ट का कहना है, ‘तुलना ईर्ष्या की ओर धकेलने वाला चिकना रास्ता है।’
डेनियला ने तुलना के बारे में बखूबी कहा है कि कैसे किसी की तुलना करने से वह व्यक्ति दूसरे के प्रति ईर्ष्या का भाव रखने लगता है। हम अपने बच्चे की तुलना जब उसके भाई-बहन, या दोस्त से करते हैं तो वह उनसे जलने लगता है। वह उन्हें अपना प्रतिद्वंदी मानने लगता है। माता-पिता के बार-बार तुलना करने की वजह से बच्चे एक-दूसरे के साथ प्यार से भी नहीं रह पाते।
2. हीन भावना का पैदा होना
जब माता-पिता बच्चे के कामों पर बराबर नजर बनाए रखते हैं और लगतार उनकी तुलना दूसरों से करतें हैं तो ऐसे में कई मामलों में देखा जाता है कि बच्चों का आत्म-विश्वास भी टूट जाता है और उनके मन में खुद के लिए हीन भावना पैदा हो जाती है। बच्चे की तुलना करने की वजह से वे अपने निर्णय भी खुद से नहीं ले पाते, बल्कि अपने हर काम के प्रति उनमें अविश्वास पैदा होता है। जब बच्चे को बार-बार यह बताया जाता है कि वह किसी भी काम में अच्छा नहीं है तो उनके आत्म-सम्मान को भी ठेस पहुंचती है और उन्हें लगने लगता है सब हर काम में उससे बेहतर हैं।
3. बच्चे काम करना ही बंद कर देते हैं
हीन भावना से ग्रसित बच्चे जब मान बैठते हैं कि वे कुछ भी ठीक से नहीं कर पाते तो वे एक समय के बाद काम को करना भी बंद कर देते हैं। जैसे कि आप बार-बार अपने बच्चे को बोलें कि वह ठीक से पढ़ता नहीं है। तुम्हें पढ़ना ही नहीं आता। तुम पैसे बर्बाद कर रहे हो। तुमसे बेहतर तो मैं तुम्हारे भाई या बहन को पढ़ाऊं। तो ऐसे में बच्चे को भी यह यकीन होने लगता है कि शायद मेरे माता-पिता सही कह रहे हैं। मुझे तो पढ़ाई होगी नहीं, चाहे में कितनी भी मेहनत कर लूं, तो इससे बेहतर यही है कि मैं पढ़ना ही छोड़ दूं। सिर्फ पढ़ाई ही क्यूं, बच्चे किसी भी काम को बंद कर सकते हैं, जब माता-पिता बार-बार बच्चे की तुलना किसी दूसरे से करते हैं तो।
4. बच्चों को तनाव या बेचैनी होने लगती है
बिल्कुल सही! जब किसी बच्चे की बार-बार तुलना किसी अन्य बच्चे से की जाती है तो उसका मानसिक तनाव काफी बढ़ जाता है और ऐसे में वह बेचैन होने लगता है। बच्चे अपनी छोटी-छोटी उपलब्धियों से ही माता-पिता की तारीफें हासिल करना चाहता है। लेकिन जब आप बच्चे को प्रोत्साहित करने की बजाए उसके प्रयासों के लिए उसकी दूसरों से तुलना करने लगते हैं तो बच्चे का जल्दी तनाव में आ जाते हैं।
5. बच्चे और माता-पिता के रिश्तों में दरार आ जाती है
आप जितनी बार अपने बच्चे के कामों की तुलना दूसरे बच्चों से करेंगे, बच्चा उतनी ही बार आपको अपना दुश्मन समझने लगेगा। बच्चे भावनात्मक दृष्टि से बहुत ही नाजुक होते हैं। उन्हें समझाने के लिए प्यार और अपनेपन की जरूरत होती है, लेकिन हर बात में उसकी तुलना करना, उसे आपसे दूर कर देगा। ऐसी स्थिति में बच्चा भले आपकी स्थिति को न समझ पाए, लेकिन उसे यह जरूर लगने लगेगा कि आप कभी-भी उससे खुश नहीं हो सकते, जो आप दोनों के रिश्ते के लिए ठीक नहीं है।
अगर आप बच्चे को उसकी गलती बताना चाहते हैं तो आप निश्चित तौर पर उससे बात करें। लेकिन बातचीत के दौरान आप इस बात का जरूर ध्यान रखें कि आप उसकी तुलना उसके भाई-बहन, किसी दूसरे बच्चे या फिर खुद से न कर रहे हों। खराब प्रदर्शन के लिए की जाने वाली तुलना से हर बार बच्चे का आत्म-विश्वास और आत्म-सम्मान दोनों कम होने लगेंगे और ऐसा हो, यह तो आप भी नहीं चाहेंगे। बच्चे की तुलना अगर करनी भी हो तो उसके खुद के पहले और अब के प्रदर्शन की करें, जैसे ‘तुम पहले पढ़ ही नहीं पाते थे, लेकिन अब तुम पूरा-पूरा वाक्य खुद से लिख रहे हों’ या ‘तुम पहले इतना समय टेलीविजन नहीं देखते थे, लेकिन अब अधिक समय टेलीविजन देखने की वजह से तुम्हारे नंबर भी कम हो रहे हैं।’