नवजात शिशु की त्वचा और आंखों का रंग पीला होने लगे तो समझ जाना चाहिए कि बच्चे को पीलिया (जॉन्डिस) हुआ है। मौजूदा समय में नवजात शिशुओं को पीलिया हो जाना बहुत ही सामान्य सी बात है, जिसकी वजह है बच्चे के शरीर में बिलिरूबिन का स्तर (bilirubin level) तेजी से बढ़ना। इसकी वजह से बच्चे की लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं और उनका रंग पीला पड़ने लगता है।
थोड़े बड़े बच्चों या व्यस्कों में पीलिया होने पर उनका लीवर खुद ही बिलिरूबीन पर कार्य करना शुरू कर देता है और वे आंत के रास्ते होते हुए हमारे शरीर से बाहर निकल जाते हैं। लेकिन छोटे बच्चों में लीवर अभी इतना मजबूत नहीं होता कि वह बिलिरूबीन को हमारे शरीर से बाहर कर दें। लेकिन अच्छी खबर यह है कि ज्यादातर मामलों में नवजात शिशुओं में दो से तीन सप्ताह के बीच खुद ही पीलिया ठीक हो जाता है, क्योंकि इस दौरान बच्चे का लीवर भी सही से काम करना शुरू कर देता है।
नवजात शिशुओं में पीलिया के लक्षण – Piliya Ke Lakshan
आइए जानते हैं नवजात शिशु में कैसे करें पीलिया की पहचान
- नवजात शिशुओं में पीलिया के शुरुआती लक्षणों में सबसे पहले आता है उनकी त्वचा और आंखों के रंग का पीला हो जाना। बच्चे की त्वचा या आंखों का रंग लगभग जन्म के 2 से 4 दिन के बीच में बदलना शुरू हो जाता है, अगर उन्हें पीलिया हो। जो बाद में पूरे शरीर पर भी फैल जाता है।
- अक्सर नवजात शिशुओं में जन्म के 3 से 7 दिन तक बिलिरूबीन का स्तर सबसे अधिक पाया जाता है।
- बच्चे की त्वचा पर हल्के से उंगली दबाने पर अगर उसकी त्वचा सफेद की जगह पीली नजर आए तो यह भी पीलिया होने का संकेत हो सकता है।
बच्चों में पीलिया के कारण:
बच्चों में जन्म के साथ ही पीलिया होने की आशंका सबसे अधिक होती है:
- ऐसे बच्चे जो प्रीमैच्योर हों या जिनका जन्म गर्भकार के 37वें सप्ताह से पहले ही हुआ हो।
- ऐसे बच्चे जिन्हें सही मात्रा में मां का दूध या फॉर्मूला दूध न मिल पा रहा हो, फिर चाहे उसका कारण मां में दूध का न बनना या उनका सही तरह से दूध न पी सकना हो।
- ऐसे बच्चे जिनका ब्लड टाइप अपनी मां के ब्लड टाइप से भिन्न हो। ऐसे में नवजात शिशु में ऐसी एंटीबॉडीज बनती हैं जो उनकी अपनी लाल रक्त कोशिकाओं को ही नष्ट करने लगती हैं और बच्चे में बिलिरूबीन का स्तर तेजी से बढ़ने लगता है।
- बच्चे में लीवर संबंधी समस्या होना।
- कोई और संक्रमण होना।
- बच्चे में एनजाइम्स की कमी होना।
- बच्चे की लाल रक्त कोशिकाओं में कोई समस्या होना।
कब करें डॉक्टर से संपर्क
वैसे तो बच्चे के जन्म के 3 दिन बाद डॉक्टर खुद ही बच्चे की सामान्य जांच के लिए बुला लेते हैं। लेकिन अगर किसी कारणवश डॉक्टर न बुलाए या फिर आपको बच्चे में पीलिया का कोई भी लक्षण दिखो तो आप जल्द ही डॉक्टर से संपर्क करें। वैसे तो आप तौर पर नवजात शिशुओं को होने वाला पीलिया खुद-ब-खुद ही ठीक हो जाता है, पर पीलिया के गंभीरता जानना भी बहुत जरूरी होता है, क्योंकि कभी-कभी बिलिरूबीन बच्चे के दिमाग पर भी गहरा असर डाल सकते हैं। ऐसे में इन लक्षणों को देखते ही तुरंत डॉक्टर से मिलें:
- अगर बच्चे में पीलिया के लक्षण और अधिक फैल रहे हों या गंभीर रूप ले रहे हों।
- अगर बच्चे को 100 डिग्री फारेनहाइट से अधिक बुखार हो।
- अगर बच्चे की त्वचा या आंख का पीला रंग और भी अधिक बढ़ रहा हो।
- अगर बच्चा ढंग से मां का दूध या फॉर्मूला दूध भी न पी रहा हो और बहुत तेज आवाज में रो रहा हो।
नवजात शिशु में पीलिया का इलाज – Piliya Ka Ilaj
- नवजात शिशुओं में ज्यादातर मामलों में पीलिया खुद-ब-खुद ठीक हो जाता है। लेकिन डॉक्टरी सलाह मानें तो इस दौरान मां को अपने बच्चे को अधिक से जल्दी-जल्दी जैसे एक दिन में लगभग 8 से 12 बार दूध पिलाना चाहिए। इससे बच्चे के शरीर से बिलिरूबीन अपने आप ही निकल जाएंगे।
- अगर पीलिया का स्तर बहुत अधिक न हो तो डॉक्टर ऐसे में नवजात शिशु को दिन में लगभग आधे घंटे के लिए सूरज की रोशनी में रखने की भी सलाह देते हैं।
- ऐसी स्थिति में मां को हल्दी और घी का सेवन कम से कम करना चाहिए, क्योंकि मां के दूध से बच्चे को भी अपनी खुराक मिलती है और जैसा मां खाएगी, वैसा ही बच्चे को भी मिलेगा। घी को पचाना बच्चे के लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा और उसका लीवर फिल्हाल बहुत अच्छे से काम नहीं कर रहा होता।
- अगर बच्चे का पीलिया बहुत गंभीर स्तर पर होता है तो इसके लिए फोटोथेरिपी दी जाती है, जिसमें बच्चे को नीली स्पेक्ट्रम लाइट के नीचे रखा जाता है जिससे उसके शरीर में मौजूद बिलिरूबीन खुद-ब-खुद ही नष्ट हो जाते हैं। ऐसी रोशनी से बच्चे की आंखों पर भी असर हो सकता है, इसीलिए उन्हें एक खास चश्मा भी पहनाया जाता है। इस स्थिति में बच्चे को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ता है।
- बहुत कम मामलों में नवजात शिशुओं में पीलिया बहुत ही अधिक गंभीर रूप ले लेता है, ऐसे में बच्चे को खून भी चढ़ाना पड़ता है, जिसमें उनके खून में लाल रक्त कोशिकाएं अधिक तंदरूस्त होती हैं और वे जल्दी से बिलिरूबीन को नष्ट भी कर देती हैं।
पीलिया होना बहुत ही सामान्य बात है, लेकिन ऐसे में बच्चे की देख-रेख करना बेहद जरूरी है। अगर आप भी चाहते हैं कि आपका बच्चा जल्द से जल्दी ठीक हो जाए तो ऐसे में बच्चे के लिए सबसे बेहतर होता है मां का दूध, जिसमें से उसे सभी जरूरी पोषक तत्व मिल जाते हैं। इसकी अलावा समय-समय पर बच्चे की डॉक्टरी जांच भी बहुत अहम होती है। अगर आप बच्चे को मां का दूध नहीं दे पा रहे तो उसे फॉर्मूला मिल्क भी 2 से 3 घंटे के अंतराल पर देते रहें।
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