रिया और विमल आज बहुत खुश हैं। आज जन्म के बाद उनका प्यारा – सा बच्चा अस्पताल से घर जो आया है। अब जबकि उनका दुलारा घर आ चुका है तो उसकी भरपूर देखभाल की ज़िम्मेदारी उन पर है। दोनों को ही समझ नहीं आ रहा कि कैसे इस रूई – से मुलायम बच्चे का अच्छी तरह ख्याल रखा जाए। ऐसे ही न जाने कितने नए बने माँ बाप होंगे जिन्हें शिशु की देखभाल (Navjat Shishu Ki Dekhbhal) को लेकर उलझन हो रही होगी। तो चलिए जानते हैं जन्म से लेकर लगभग एक वर्ष तक के शिशु की देखभाल कैसे की जाए।
बच्चों की देखभाल – नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें – Navjat Shishu Ki Dekhbhal
साफ़ और हवादार कमरे में मुलायम बिछौना
नवजात शिशु आपकी गोद में रहेगा या फिर बिस्तर पर लेटा हुआ। ऐसे में उसका बिछौना यानी बिस्तर साफ़ और हवादार कमरे में लगाएं। इसके लिए सूती कपड़े में रूई भरवाकर बिछौना यानी छोटा गद्दा बनवाएं। इस समय नवजात शिशु का सिर तकिए पर सीधा होना चाहिए जिससे सिर टेढ़ा मेढ़ा न हो, गोल रहे। इसके लिए बीच में गोल गड्ढे वाले तकिए या यू शेप के तकिए आसानी से मार्केट में मिल जाते हैं।
सही समय पर स्तनपान और खानपान
एक नन्ही जान लगभग एक साल तक माँ के दूध पर ही निर्भर रहता है। इसलिए आप अपने खान – पान पर पूरा ध्यान दें जिससे दूध खूब हो। बच्चे को हर दो घंटे के अंतर से 10 से 15 मिनट तक दूध पिलाएं। जब तक बच्चा स्तन मुंह में न ले उसके होंठों से लगा कर कोशिश करती रहें। जन्म से छह महीनों तक बच्चा माँ का दूध ही पिए तो अच्छा है। माँ के दूध में शरीर के लिए ज़रूरी पोषक तत्व और एंटीबॉडी होते हैं जो बच्चे के स्वस्थ रहने और विकास में सहायक होते हैं। शिशु को दूध पिलाने के बाद स्तन कम भरा हुआ महसूस होना चाहिए। इसी से पता चलता है कि शिशु को पर्याप्त दूध मिल रहा है।
अगर माँ का दूध शिशु को नहीं दिया जा सकता, तो शिशु को डॉक्टर द्वारा बताया गया फॉर्मूला दूध दें। लगभग छह – आठ महीने का होने के बाद बच्चे को सेरेलेक, पिसा हुआ दलिया, पतली खिचड़ी, बिस्किट, घर में बना फलों का जूस, मेश किया केला, दूध में सेब मिक्सर करके खिलाना, सूजी की पतली खीर आदि बनाकर खिलाएं।
ज़रूरी है डकार दिलाना
बच्चे को दूध पिलाने के बाद उसे डकार ज़रूर दिलाएं। दरअसल दूध पीते समय बच्चे समय हवा निगल लेते हैं, जिससे उनके पेट में गैस हो जाती है और यह पेट के दर्द की वजह बनती है। डकार दिलाने से यह हवा बाहर निकल जाती है और पाचन में मदद करती है। इससे शिशु में दूध उलटने और पेट के दर्द की समस्या नहीं होती है। डकार के लिए शिशु को धीरे से एक हाथ से अपने सीने से लगा लें। उसकी ठोड़ी अपने कंधे पर टिकाएं। अपने दूसरे हाथ से उसकी पीठ को धीरे – धीरे थपथपाएं जब तक वह डकार ना ले ले।
मालिश बनाए शिशु को मज़बूत
मालिश आपके बच्चे के साथ आपके बंधन को मजबूत करने का एक बेहद प्यार अहसास है। मालिश से बच्चे के शरीर को बहुत आराम मिलता है। शिशु को सुलाने में और रक्त परिसंचरण और पाचन को बेहतर करने का काम भी यह करती है। मालिश के लिए किसी अच्छे जड़ी बूटियों से भरपूर तेल का प्रयोग करें। अपने हाथों तेल लगाकर धीरे – धीरे कोमल हाथों से शिशु की मसाज करें। सबसे पहले पैरों पर ऊपर से नीचे की ओर मसाज करें। ऐसे ही हाथों की मसाज करें। कमर पर ऊपर से नीचे की तरफ और पेट व सीने पर हाथों को गोलाकार चलाएं। पेट धीरे से उसके शरीर को सहलाएं। चेहरे, गर्दन, सिर की मालिश करें। नहाने से कम से कम घंटे भर पहले मालिश करना फ़ायदेमंद होता है। कम से कम साल भर तक के बच्चे की मालिश अवश्य करें।
नहलाएं जरा संभलकर
शिशु को नहलाने से पहले बहुत सी बातों का ध्यान रखना चाहिए। उसके नाभिरज्जु के बचे हुए भाग के सूखने और गिरने के बाद 1-2 दिनों के अंतराल पर शिशु को नहलाना चाहिए। नहलाने से पहले ज़रूरी सामान जैसे बाथटब, गुनगुना पानी, सौम्य बेबी सोप या बॉडी वॉश, वॉशक्लॉथ , मुलायम तौलिया, बेबी लोशन या क्रीम, नए डायपर और बच्चे के साफ कपड़ों की आवश्यकता होगी। इसमें किसी की मदद लें, ताकि एक व्यक्ति शिशु की गर्दन और सिर को पानी के ऊपर रख सके और दूसरा व्यक्ति शिशु को नहला सके। उसके कान, नाक, मुंह और आँखों में साबुन व पानी नहीं जाना चाहिए। गुनगुने पानी का इस्तेमाल करें। बच्चे के शरीर को नरम तौलिए से सुखाएं। लोशन लगाएं और एक साफ डायपर और कपड़े पहनाएं।
सुलाएं बड़े प्यार से
जन्म से लेकर लगभग दो महीनों तक नवजात शिशु को एक दिन में लगभग 16-18 घंटे सोने की आवश्यकता होती है। एक बार में वे 2 से 4 घंटे तक सोते हैं और अगर वे भूखे या गीले होते हैं तो जाग जाते हैं। जैसा कि बच्चे को हर 2 घंटे में दूध पिलाया जाना चाहिए, आपको उसे जगाकर दूध पिलाना पड़ सकता है। सोते समय शिशु के सिर की स्थिति को बदलते रहना चाहिए। यह सिर चपटा होने से बचाता है। एक बच्चा माँ के सीने से लगकर अच्छी नींद लेता है।
नाभि की देखभाल
जन्म से लेकर दो – तीन हफ़्ते शिशु की देखभाल का एक महत्वपूर्ण पहलू है नाभिरज्जु या नाभि क्षेत्र की देखभाल करना। शुरुआती 2-3 हफ्तों में ध्यान से शिशु को न नहलाएं या गुनगुने पानी से स्पंज कराएं। नाभि क्षेत्र को साफ और सूखा रखें। डायपर को नीचे मोड़ कर रखें ताकि नाभि सूख जाए। इसे साफ करने के लिए नम कपड़े का उपयोग करें और एक साफ कपड़े से सुखाएं। अगर वहाँ लालिमा, सूजन या मवाद है, या फिर नाभि क्षेत्र में खून बह रहा है तो शिशु को डॉक्टर को दिखाना ज़रूरी है।
नाखूनों की साफ – सफाई
छोटे बच्चों के नाखून बहुत तेजी से बढ़ते हैं। शिशु अपने हाथों से अपने चेहरे या शरीर को खरोंच सकता है। इसलिए बच्चे के नाखूनों को काटना जरूरी है। शिशु के नाखून नरम होते हैं, इसलिए बच्चों वाली नेलकटर का प्रयोग करें। जब शिशु सो रहा हो तब नाखूनों को धीरे से काटें। इन्हें बहुत गहरे न काटें क्योंकि नाखून बहुत कोमल होते हैं और यह बच्चे के लिए दर्दनाक हो सकता है। जब बच्चा थोड़ा बड़ा होता है तो वह अपने हाथ या चीजों को मुंह में डालता है ऐसे में उसके हाथ व नाखून साफ़ होने चाहिए।
डायपर से जुड़ी देखभाल
अगर शिशु पर्याप्त मात्रा में दूध पी रहा है, तो वह नियमित रूप से पॉटी के साथ–साथ एक दिन में कम से कम 6 से 8 डायपर गीले करेगा। इसलिए उसका डायपर भरा हुआ महसूस हो, उसे बदल दें। दिन में कम से कम 10 बार तक इसे बदलना पड़ सकता है। एक गंदे डायपर को बदलने के लिए आपको एक चेंजिंग शीट, डायपर वाइप्स, डायपर रैश क्रीम या बेबी पाउडर और साफ डायपर की ज़रूरत होगी। यू.टी.आई. को रोकने के लिए शिशु को पीछे से आगे की ओर पोंछेने के बजाय आगे से पीछे की ओर पोंछें। बच्चे को दिनभर में कुछ घंटों के लिए डायपर के बिना रहने दें। अगर डाइपर से रैशेज दिखते हैं उन पर रेशफ़्री क्रीम लगाएं।
छोटे बच्चों को पकड़ें ध्यान से
लगभग छ महीने तक के बच्चे के सिर और गर्दन को एक हाथ से सहारा देेते हुए पकड़ना चाहिए। इसकी वजह यह है कि उसकी गर्दन की मांसपेशिया सिर को संभालने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत नहीं हैं। रीढ़ की हड्डी अभी भी बढ़ रही है और मजबूत हो रही है। शिशु की गर्दन कम से कम 3 महीने की उम्र के बाद अपने दम पर सिर का संभालने लायक होती है। इसलिए नवजात शिशु की देखभाल करते समय उसके सिर और गर्दन को सहारा देने पर ध्यान दें नहीं तो उसकी गर्दन को झटका लगने का डर रहता है। हाथ – पैरों को भी झटका न लगने दें। साल भर तक बच्चा बहुत नाज़ुक होता है।
जब बच्चा रोए लगातार
अगर बच्चा लगातार रोए जा रहा है तो उसे गोद में लेकर सहलाएं और अपने दूध में लगाने की कोशिश करें। हो सकता है वह भूखा रह गया हो। सिर पर प्यार से हाथ फिराएं। घर भर में गोद में लेकर टहलाएं। उससे खूब बातें करें। वह चुप हो जाएगा, फिर भी चुप न हो तो एक बार डॉक्टर से बात करें।
टीकाकरण का रहे ख्याल
सही समय पर बच्चे को सभी ज़रूरी टीके लगवाएं। बच्चों का टीकाकरण चार्ट (Vaccination Chart)
जब बच्चा चलने को हो तैयार
लगभग दस महीने का होने पर बच्चा खुद चलने की कोशिश करने लगता है। इसलिए उसको आरामदायक बांधने वाली सैंडल पहनाएं। 12 टिप्स – ट्रिक्स: कैसे घर को बनाएं चाइल्ड प्रूफ होम (Childproofing your home in Hindi)
ध्यान रखने योग्य अन्य बातें-
- साल भर के बच्चे को हमेशा अपने हाथों को अच्छे से साबुन या हैण्ड वाश से धोएं। बच्चों का इम्यून सिस्टम उतना मजबूत नहीं होता है। इसीलिए गंदे हाथों से छूने से बच्चे को इन्फेक्शन का डर रहता है।
- बच्चे को ज़ोर-ज़ोर से ना हिलाएं इससे बच्चे के सर में खून जमने की खतरा होता है।
- बच्चे के सोते समय ज़ोर से पंखा ना चलाएं क्योंकि इससे बच्चे को साँस लेने में मुश्किल होती है
- छोटे बच्चों को लोगों की बातें, गाना सुनना बहुत अच्छा लगता है। बच्चों को आप लोरी भी सुना सकते हैं। इससे बच्चा खुशी का अनुभव करता है।
- शिशुओं के सामने ज्यादा शोरगुल ना करें और उन्हें शांत माहौल दें।
- नवजात शिशु को चाहे बोतल से हो या स्तन पान के माध्यम से, बच्चे के भूख के हिसाब से दूध पिलाना चाहिए।
- बच्चों को रात और दिन के विषय में समझने में समय लगता है। चिंता की कोई बात नहीं है क्योंकि 3 महीने तक ज्यादातर नवजात बच्चे दिन को सोतें हैं और रात भर जागते हैं। इसके बाद वे दिन रात का थोड़ा अंतर समझने लगते हैं।
- बच्चे की आँखों में काजल न लगाएं।
यह लेख डॉ.अनुराग प्रसाद – एमबीबीएस, एमडी -पीडियाट्रिशियन, चाइल्ड स्पेशलिस्ट एंड न्यूबॉर्न बातचीत पर आधारित है