महिलाएं किसी के मान-सम्मान की मोहताज नहीं हैं, उनकी कामयाबी ही उनकी पहचान बन चुकी है। आज अंतरराष्टीय महिला दिवस के मौके पर हम देश और दुनिया की कुछ ऐसी ही महिलाओं का जिक्र करने जा रहे हैं, जिन्होंने हाल-फिल्हाल में अपने देश और खुद को नई ऊंचाईयों तक पहुंचाया है। 10 नामचीन अंतर्राष्ट्रीय महिलाओं के बारे में जानने के लिए पढ़ें
भारत देश की 10 नामचीन महिलाएं
यह एक संपूर्ण सूची नहीं है, हमने विभिन्न क्षेत्रों में सिर्फ 10 लोकप्रिय महिलाओं की पहचान की है
1. निर्मला सीतारमण
वर्ष 2019 के नए कैबिनेट गठन के बाद निर्मला सीतारमण को देश का वित्त एवं कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया। इससे पहले वे देश की रक्षा मंत्री भी रह चुकी हैं। इंदिरा गांधी के बाद वे दूसरी महिला हैं, जिन्हें देश के इतने जिम्मेदार पदों पर कार्यभार संभालने का मौका मिला। वे तमिलनाडु के मदुरै से हैं, जहां उनका जन्म तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा मद्रास और तिरुचिरापल्ली से पूरी की। उन्होंने स्नातक और स्नातकोत्तर में कला विषयों से डिग्री हासिल की।
अगर उनके राजनैतिक सफर की बात की जाए तो वर्ष 2006 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के साथ शुरु किया। उनकी लगन को देखते हुए 2010 में पार्टी ने उन्हें अपना प्रवक्ता घोषित किया। इसके बाद 2014 में पार्टी ने उन्हें नरेन्द्र मोदी के कैबिनेट में स्वतंत्र अधिकारों के साथ राज्य मंत्री के रूप में वित्त मंत्रालय एवं कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई। जिसके साथ वे चयनित राज्य सभा सदस्य भी बनीं।
अपने पति के साथ लंदन में रहने के दौरान उन्होंने लंदन के एक होम डेकोर स्टोर हैबिटाट में सेल्सपर्सन का काम किया। इसके अलावा ब्रिटेन के एग्रीकल्चरल इंजीनियर्स एसोसिएशन के लिए उन्होंने बतौर एस्सिटेंट टू इकोनॉमिस्ट भी अपनी सेवाएं दीं। इसके अलावा उन्होंने प्राइस व्हाटरहाउस में सीनियर मैनेजर और बीबीसी वर्ल्ड सर्विसेज के साथ भी काम किया। उनकी राजनैतिक सफलताएं तो हम जानते ही हैं, इसके अलावा उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व के लिए दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मैग्जीन फोर्ब्स ने भी उन्हें वर्ष 2019 की दुनिया प्रभावशाली महिलाओं में 34वें पायदान पर खड़ा कर दिया।
निर्मला सीतारमण के पति पारकला प्रभाकर का परिवार कॉन्ग्रेस पार्टी का समर्थक था। ये दोनों जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान एक-दूसरे को मिले। 1986 में इनकी शादी हो गई और इनकी एक बेटी भी है। बाद में प्रभाकर भी आंध्र प्रदेश से भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता नियुक्त किए गए।
2. मैरी कॉम
मेग्नीफिसेंट मैरी के नाम से मणिपुर की एम सी मैरी कॉम को जाना जाता है। बेशक मैरी कॉम के लिए सफलता की सीढ़ी चढ़ना कभी भी आसान नहीं था। मैरी कॉम मणिपुर के ग्रामीण इलाके में पैदा हुई। बचपन में मेरी कॉम ने अपने माता-पिता की खेतों में मदद करके गुजारा। स्कूली शिक्षा के दौरान मैरी ने एथलीट्स को अपना लक्ष्य बनाया, जबकि बाद में उन्होंने बॉक्सिंग को बतौर करियर चुन लिया। इसकी एक अहम वजह रही कि उन्हीं दिनों 1998 में डिन्ग्को सिंह बेंकॉक एशियन गेम्स से बॉक्सिंग में गोल्ड मेडल लेकर लौटे थे। 9वीं में उनका स्कूल बदल दिया गया, जिस वजह से वह अपनी 10वीं की परीक्षा पास नहीं कर पाईं और पढ़ाई से उनका दिल उठ गया। बाद में उन्होंने इम्फाल के ओपन स्कूल से 10वीं की और चूरचंदनपुर कॉलेज से स्नातक की परीक्षाएं दीं।
स्कूल में एथलीट्स में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद मैरी ने वर्ष 2000 में बॉक्सिंग में अपना भविष्य देखा। वहीं इम्फाल में उन्होंने अपने पहले कोच के कोसाना मितैई से प्रशिक्षण हासिल किया। इसके बाद मैरी ने इम्फाल की स्पोट्र्स अकेडमी जाने का फैसला लिया। बॉक्सिंग में आने के अपने फैसले को मैरी ने अपने पिता से छिपाया, जिनका मानना था कि बॉक्सिंग की वजह से उनके चेहरे पर निशान आ सकते हैं और मेरी की शादी में इससे दिक्कतें आएंगी। जबकि उसी वर्ष अखबार में मैरी की छपी फोटो देखने के बाद उन्हें सच पता लग गया। बाद में उन्होंने मैरी को अपना पूरा समर्थन भी दिया।
बॉक्सिंग को अपना लक्ष्य बना चुकी मैरी कॉम ने एक के बाद एक कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सफलताएं अपने नाम की हैं। वे अब तक तीन बार एआईबीए वीमेन वर्ल्ड चैम्पियनशिप अपने नाम कर चुकी हैं। इसके अलावा दो बार एशियन वीमेन्स चैम्पियनशिप और 1-1 बार वीमेन्स वर्ल्ड चैम्पियनशिप और वीनेस वीमेन्स बॉक्स कप भी हासिल किया। 2005 में उन्होंने कीएक फुटबॉलर से शादी की, जिसके बाद उन्हें जुड़वां बेटे हुए। बच्चों के बाद मैरी कॉम ने दोबारा से अपने करियर पर फोकस करना शुरू किया और उन्हें पहली सफलता 2008 में एआईबीए वीमेन वर्ल्ड चैम्पियनशिप, चीन में चौथी बार गोल्ड मेडल के साथ हाथ लगी। उनके कुल 3 बेटे हैं, जिसके बावजूद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और उनके नाम कुल 6 बार एआईबीए वीमेन वर्ल्ड चैम्पियनशिप का खिताब है।
2018 उनके लिए बेहद खास रहा, क्योंकि पहली बार उनकी श्रेणी लाइट फ्लाईवेट 48 किलोग्राम वर्ग, को राष्ट्रमंडल खेलों, ऑस्ट्रेलिया में शामिल किया गया और उन्होंने पहली ही बार में यह खिताब अपने नाम कर लिया। इसके अलावा भी कई चैम्पियनशिप्स मैरी कॉम ने अपनी फेहरिस्त में जोड़ी हैं, जिनसे उनका बतौर खिलाड़ी कद और भी बढ़ गया है।
खेल के लिए दिए जाने वाले अर्जुन अवार्ड, राजीव गांधी खेल रत्न पुरुस्कार के अलावा पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है।
3. मिताली राज
हमारी महिला क्रिकेट टीम की कैप्टन और बल्लेबाज मिताली राज सभी क्रिकेट प्रेमियों के दिलों पर भी राज करती हैं। उन्होंने वर्ष 1999 में आयरलैंड के खिलाफ एक दिवसीय मैच सीरीज के साथ अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट की दुनिया में कदम रखा, जिसमें उन्होंने 114 शानदार रनों की पारी खेली। वहीं 2001-02 में साउथ अफ्रीका के खिलाफ लखनऊ में उन्होंने टेस्ट मैच खेलने की शुरुआत की। मिताली राज के नाम कई रिकॉर्ड भी हैं। उन्होंने अपने तीसरे टेस्ट मैच कैरेन रोल्टन का वैयक्तिगत टेस्ट स्कोर का विश्व रिकॉर्ड (209 रन) 214 रनों के साथ तोड़ दिया। वर्ष 2003 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
पिछले साल ही मिताली पहली भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ी भी बन गई हैं, जिन्होंने 200 एक दिवसीय मैच खेलें हैं। इसी के साथ सितंबर, 2019 में उन्होंने टी-20 से सन्यास लेने की बात भी कह डाली। मिताली जहां अपनी बल्लेबाजी से दूसरी टीमों के हौंसले ध्वस्त कर देती हैं, वहीं लेग-स्पीनर के रूप में वे भारतीय क्रिकेट टीम के लिए एक बहुत बड़ा गौरव भी हैं। फरवरी 2017 में वे दूसरी खिलाड़ी थी, जिन्होंने विश्व एक दिवसीय इनिंग्स में 5500 रन बनाए थे। वहीं वे भारतीय टीम के लिए सबसे अधिक एक दिवसीय और टी-20 मैचों में बतौर कैप्टन रहने वाली पहली खिलाड़ी भी हैं।
अगर मिताली राज की निजी जिंदगी की बात की जाए तो वह एक तमिल परिवार से हैं। उनके पिता एयरफोर्स में एयरमैन रहे हैं। मिताली ने 10 साल की आयु से ही क्रिकेट खेलना शुरु कर दिया था। स्कूल के दिनों में वे अपने बड़े भाई के साथ-साथ दूसरे लड़कों के साथ नेट प्रैक्टिस किया करती थीं।
जुलाई 2017 में उन्होंने विश्व एक दिवसीय इनिंग्स में सबसे अधिक रन, 6000 बना कर खुद को पहले पायदान पर खड़ा कर लिया। दिसंबर 2017 में वे आईसीसी वीमेन्स ओडीआई टीम ऑफ ईयर के खिलाडि़यों में से एक थीं। हालांकि मिताली पिछले साल खुद को टी-20 क्रिकेट से अलग कर चुकी हैं, लेकिन उनका मानना है कि टी-20 से रिटायरमेंट के बाद उनका पूरा फोकस 2021 में होने वाले एक-दिवसीय विश्व कप पर है।
4. गीता फोगाट
भारत के लिए फ्रीस्टाइल कुश्ती में स्वर्ण पदक लाने वाली गीता फोगाट पहली भारतीय महिला हैं, जिन्होंने 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में भारत को जीत दिलाई थी। हरियाणा के बलाली गांव में जन्मी गीता फोगाट के पहले गुरु और द्रोणाचार्य अवॉर्ड से सम्मानित उनके पिता महावीर सिंह फोगाट रहे हैं। गीता फोगाट ने राष्ट्रमंडल खेलों से पहले 2009 में जलंधर में हुई राष्ट्रमंडल चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल किया।
इसके बाद 2011 में मेलबर्न हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भी 55 किलोग्राम वर्ग में भी उन्हें स्वर्ण पदक मिला। इसके अलावा 2012 के वर्ल्ड चैम्पियनशिप औरएशियन चैम्पियनशिप दोनों में उन्होंने भारत के लिए कांस्य पदक और फिला एशियन ओलंपिक क्वॉलिफिकेशन टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक जीता। 2013 में जोहान्सबर्ग में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में उन्हें रजत पदक हासिल हुआ।
पहलवानों के परिवार से होने के कारण गीता की छोटी बहने भी कुश्ती में ही अपना जौहर दिखा रही हैं। उनकी छोटी बहन बबिता फोगाट और चचेरी बहन विनेश फोगाट ने 2014 के राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता। उनकी छोटी बहन रितु फोगाट ने 2016 की राष्ट्रमंडल चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक पर अपना कब्जा जमाया। उनकी सबसे छोटी बहन संगीता फोगाट भी इस वक्त कुश्ती में अपना दम दिखा रही हैं। 31 वर्षीया गीता ने नवंबर 2016 में अपने खेल के जाने-माने नाम पवन कुमार से शादी की। पिछले साल के अंत दिसंबर में उन्होंने एक बेटे को जन्म भी दिया।
उनके संघर्ष को देखते हुए बॉलीवुड के बड़े सितारे आमिर खान ने उनके जीवन पर आधारित फिल्म दंगल भी बनाई है, जिसमें खुद उनके पिता महावीर फोगाट का पात्र निभाया है। गीता-बबिता दोनों की मेहनत और लगन से ही हरियाणा भी न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के खेल के मानचित्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा पाने में सफल हुआ है। इससे पहले वहां के पुरुष पहलवानों की ही धाक अधिक दिखती थी।
5. अगाथा के संगमा
राजनीतिक माहौल में पली-बढ़ी अगाथा के संगामा के पिता पी ए संगमा लोक सभा के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं। इस समय अगाथा मेघालय के तुरा क्षेत्र से सांसद हैं। अगाथा सिर्फ 21 वर्षों की थी, जब वर्ष 2009 में पहली बार उन्होंने लोक सभा राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ा था। वे यूपीए-2 की सबसे कम उम्र की सासंद भी थीं। वर्ष 2008 में उनके पिता पी ए संगमा ने जब लोक सभा की अपनी सदस्यता छोड़ी थी, उस वक्त अगाथा ने पिता की जगह उप-चुनावों में पहली बार चुनी गईं। इसके बाद से अब तक कुल चार बार लोक सभा सांसद चुनी जा चुकी हैं। यहां तक कि वे 29 वर्ष की आयु में सबसे कम उम्र की मंत्री भी रह चुकी हैं। उस समय मनमोहन सिंह की सरकार में उन्हें ग्रामीण विकास का कार्यभार सौंपा गया था।
अगाथा वर्ष 2018 के मेघालय के असेंबली चुनावों में नैशनल पीपल्स पार्टी की टिकट पर विधायक के चुनाव भी लड़ा। वहां उन्हें जीत भी हासिल हुई, लेकिन अपने भाई कोनार्ड संगमा के लिए रास्ता बनाते हुए, उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया और आज उनके भाई मेघालय के मुख्य मंत्री हैं।
हालांकि अगाथा का जन्म नई दिल्ली में हुआ, लेकिन उनका पालन-पोषण मेघालय के पश्चिमी गारो पहाडि़यों के इलाके में हुआ। अगाथा के संगमा ने पुणे विश्वविद्यालय से कानून विषय में अपनी स्नातक की शिक्षा पूरी की और उसके बाद ब्रिटेन के नॉटिंघम विश्वविद्यालय से उन्होंने पर्यावरण प्रबंधन में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। इसके अलावा उन्होंने साइबर लॉ, कॉर्पोरेट लॉ, मानवाधिकार कानून, प्रत्याभूति एवं निवेश कानून जैसे विषयों में भी डिप्लोमा हासिल किया है। अगाथा दिल्ली हाई कोर्ट बार काउंसिल की सदस्या भी हैं और पर्यावरणविद भी। पिछले वर्ष नवंबर में उनका विवाह डॉ पैट्रिक रोंग्मा मारक से हुआ।
6. हिमा दास
गोल्डन गर्ल या ढींग एक्सपे्रस नाम से अपनी पहचान बना चुकी हिमा दास देश की स्टार महिला धाविका हैं। असम की रहने वाली हिमा दास ने कई रिकॉर्ड अपने नाम किए हैं। वर्ष 2018 में हिमा ने जकार्ता में हुए एशियन खेलों में 50.79 सेकेंड में 400 मीटर दौड़कर अपना भारतीय रिकॉर्ड बनाया। इसके लिए उन्हें स्वर्ण पदक से नवाजा गया। इसके अलावा हिमा दास पहली भारतीय एथलीट भी बन गई हैं, जिन्होंने 2018 में ही आईएएएफ वर्ल्ड अंडर-20 चैम्पियशिप्स में भी ट्रैक इवेंट में स्वर्ण पदक हासिल किया है।
हिमा का जन्म असम के ढींग कस्बे के नजदीक एक गांव में हुआ। इनके माता-पिता पेशे से किसान हैं और वे पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं। हिमा भी शुरु में फुटबॉल खिलाड़ी बनना चाहती थीं और स्कूल में अपने दोस्तों के साथ फुटबॉल खेला भी करती थीं। लेकिन बाद में उन्हें भारत में बतौर खेल महिलाओं के लिए फुटबॉल में कोई भविष्य नहीं दिखाई दिया। स्कूल के फिजिकल एजुकेशन के टीचर ने उन्हें स्प्रिंटर बनने की सलाह दी, जिसने उनके जीवन को एक नया मोड़ दिया।
आज सिर्फ 19 वर्ष की देश की इस बेटी के नाम कई खिताब हैं। जुलाई 2018 में फिनलैंड में हुई वर्ल्ड अंडर-20 चैम्पियनशिप्स में उन्होंने 400 मीटर दौड में पहले स्थान के साथ स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद 2018 के एशियन खेलों में उन्होंने अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया, लेकिन उन्हें सिर्फ रजत पदक से ही संतुष्टि करनी पड़ी। इन्हीं खेलों में 4*400 मीटर की रीले दौड़ में पहले रजत पदक हासिल हुआ। बाद में स्वर्ण पदक विजेताओं के डोपिंग में लिप्त पाए जाने की वजह से हीमा दास और अन्य तीन धावकों को स्वर्ण पदक से नवाजा गया।
वर्ष 2019 में उन्होंने एक के बाद एक कई स्वर्ण पदक हासिल किए, जिस वजह से उन्हें गोल्डन गर्ल भी कहा जाने लगा। इसकी शुरुआत जुलाई, 2019 में पोलैंड में हुई पोजनान एथलेटिक्स ग्रां पी में 200 मीटर में स्वर्ण पदक जीतने की साथ हुई। 13 जुलाई को उन्होंने चेक गणराज्य में हुए क्लांडो एथलेटिक्स मीट में दूसरा स्वर्ण पदक जीता। एक सप्ताह बाद 20 तारीख को चेक गणराज्य में हुई नोवे मेस्टो 400 मीटर रेस में उन्हें उनका पांचवा गोल्ड मेडल मिला। इस बीच भी उन्होंने और भी स्वर्ण पदक हासिल किए। अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भारत को इतना सम्मान दिलाने के साथ ही हीमा दास देश की लड़कियों और लड़कों के लिए रोल मॉडल बन गई हैं।
7. अवनी चैधरी
लड़ाकू विमान को उड़ाने के लिए हमेशा से पुरुषों को ही तरजीह दी जाती रही है। ऐसे में पिछले साल देश की तीन बेटियों अवनि चैधरी, मोहाना सिंह और भावना कांथ ने अपनी फॉर्मल ट्रेनिंग को पूरा कर लिया है। 26 वर्षीय अवनी मध्य प्रदेश की रहने वाली हैं और उन्होंने राजस्थान के बनस्थली विश्वविद्यालय से बी टेक की डिग्री ली है। अवनी एक आर्मी परिवार में पली-बढ़ी है, जहां उनके बड़े भाई उनकी प्रेरणा बने। इसके अलावा अवनी ग्रेजुएशन के दौरान अपने विश्वविद्यालय में फलाइंग क्लब की सदस्य भी रहीं थीं, जिन्होंने उन्हें भारतीय वायु सेना की तरफ और भी आकर्षित किया।
अवनी भारतीय वायु सेना की परीक्षा को पार अपने लिए खुद अपना आसमान खोला है। भारतीय सरकार के एक प्रयास के रूप में वायु सेना ने महिलाओं के लिए लड़ाकू विमान पायलट बनने की प्रक्रिया को शुरु किया था, जिसमें अवनी सबसे पहली फाइटर प्लेन पायलट बनने वाली महिलाओं में शामिल हैं। ऐसा नहीं है कि अवनी और उनकी दूसरी साथियों के लिए इस क्षेत्र में जीत हासिल करना बहुत आसान था। पुरुष प्रधान इस क्षेत्र में उन्हें हर पल खुद को साबित करना पड़ा।
2016 में हैदराबाद में एयर फोर्स एकेडमी में एक साल के प्रशिक्षण के बाद वे फाइटर पायलट बनीं। जिसके बाद कर्नाटक के बिदर में स्टेज-3 की ट्रेनिंग के बाद अब वे सुखोई और तेजस जैसे विमानों को भी उड़ा सकती हैं। बतौर पायलट अवनी ने 19 फरवरी, 2018 को अकेले सबसे पहले मिग-21 को उड़ाया था। इसी के साथ आज वे भारतीय वायु सेना में बतौर फ्लाइट लेफ्टिनेंट अपनी सेवाएं दे रही हैं और जरूरत पड़ने पर दिन के समय दुश्मनों को आसमान में टक्कर देने के लिए तैयार हैं।
8. इंदु मल्होत्रा
सर्वोच्च न्यायाल में बतौर जज महिलाओं के हौंसलों को बुलंद कर रही हैं इंदु मल्होत्रा। सबके लिए हैरानी और महिलाओं के लिए खुशी की बात यह है कि इंदु मल्होत्रा पिछले 30 साल से सुप्रीम कोर्ट में ही वरिष्ठ वकील रही हैं और उन्हें सीधे बार काउंसिल से जज बनने का मौका मिला। निश्चित ही यह उनकी काबिलियत रही होगी, जिसकी वजह से वह सबसे बड़ी अदालत में आज जज हैं।
वर्ष 2018 में उन्हें बतौर जज चुना गया। इंदु मल्होत्रा बेंगलोर में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील ओम प्रकाश मल्होत्रा के घर पैदा हुई। उन्होंने नई दिल्ली के कैर्मल कॉन्वेन्ट स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के लिए लेडी श्रीराम कॉलेज से राजनीति विज्ञान में बी ए ऑनर्स और स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने विश्वविद्यालय के ही मिरांडा हाउस और विवेकानंद कॉलेज में बतौर लैक्चरार नौकरी भी की।
उन्होंने 1979 से 82 में विश्वविद्यालय की फेकल्टी ऑफ लॉ से कानून विषय में स्नातक की डिग्री भी ली। इसके बाद 1983 में उन्होंने इसे बतौर पेशा चुन लिया और वे दिल्ली की बार काउंसिल में सदस्य बन गईं। 1988 में परीक्षा देने के बाद वे सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड न सिर्फ नियुक्त हुईं, बल्कि उन्होंने इस परीक्षा में अव्वल स्थान भी हासिल किया, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रीय विधि दिवस पर मुकेश गोस्वामी मेमोरियल पुरस्कार भी दिया गया।
इसके बाद उन्होंने हरियाणा राज्य के लिए स्टैंडिंग काउंसिल से लेकर सेबी, डीडीए, सीएसआईआर और आईसीएआर जैसे कॉर्पोरेशंस का सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रतिनिधित्व भी किया है। 2007 में वे सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील भी बनीं। बतौर जज सुप्रीम कोर्ट में उनका कार्यकाल 27 अप्रैल 2018 से लेकर 13 मार्च 2021 तक है।
9. सुधा बालाकृष्णन
भारतीय रिजर्व बैंक की सबसे पहली प्रमुख वित्तीय अधिकारी या सीएफओ हैं, सुधा बालाकृष्णन। बतौर गवर्नर उर्जित पटेल ने एक बड़े संस्थागत ढांचे में बदलाव करते हुए आरबीआई में सीएफओ की नियुक्ति को हरी झंडी दिखाई थी। बालाकृष्णन इससे पहले नेशनल सिक्योरिटीज डिपोजिटरी लिमिटेड या एनएसडीएल की उपाध्यक्ष रह चुकी हैं। वे एक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और देश के केंद्र बैंक में सीएफओ के अलावा वे बैंक के 12 निर्देशकों में से भी एक हैं। बैंक में उनकी नियुक्ति केवल तीन साल के लिए की गई है, यानी 2018 से लेकर 2021 तक के लिए।
इससे पहले भी पूर्व गवर्नर रह चुके रघुराम राजन ने भी बैंक में ऐसी नियुक्ति करने की मांग उठाई थी, लेकिन तब उनकी मांग को नकार दिया गया। उसके बाद जैसे ही उर्जिल पटेल ने बतौर गवर्नर अपना कार्यभार संभाला उन्होंने सीएफओ की नियुक्ति के लिए नोटिस जारी कर दिया।
बतौर सीएफओ उनका काम बैंक की बैलेंस शीट को संभालना है, जिसमें सरकारी लेन देन जैसे कि सरकार से मिले भुगतान और करों के रूप में मिले राजस्व का लेखा जोखा भी शामिल है। बतौर नोडल अधिकारी बालाकृष्णन को केंद्रीय बैंक के देश और विदेशों में निवेशों पर भी नजर बनाए रखना पड़ता है। इसके अीलावा वे वित्तीय रणनीतियों को तैयार करने की भी उत्तरदायी हैं। इतनी बड़ी भूमिका निश्चित तौर पर किन्हीं काबिल हाथों में ही होनी चाहिए। और सुधा बालाकृष्णन के रूप में महिलाओं को यह कार्यभार सौंप कर देश की सरकार और गवर्नर दोनों ने साबित कर दिया कि महिलाएं कभी किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं।
10. अश्विनी पोनप्पा
मौजूदा दौर में देश की बेहतरीन बेडमिंटन खिलाडि़यों में एक नाम अश्विनी पोनप्पा का भी है। अश्विनी का जन्म 1989 में बेंग्लुरु में हुआ। हालांकि उनके पिता देश के लिए हाॅकी खेल चुके हैं, लेकिन अश्विनी ने अपने लिए बेडमिंटन को चुना। स्कूल और कॉलेज के स्तर पर उन्होंने कई खिताब अपने नाम किए, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन्हे कामयाबी मिली ढाका में 2010 में हुए साउथ एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक के साथ। इसके बाद 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने ज्वाला गुट्टा के साथ वीमेन्स डब्ल्स में खेल कर भारत को कॉमनवेल्थ गेम्स का उसका पहला स्वर्ण पदक जीताया। इसी जीत के साथ अश्विनी पोनप्पा और ज्वाला गुट्टा का नाम घर-घर में प्रसिद्ध हो गया।
इसके बाद लंदन में 2011 में हुई वर्ल्ड चैम्पियनशिप में इन दोनों ने भारत को पहला कांस्य पदक दिलाया। इसके बाद कुछ समय के लिए अश्विनी पोनप्पा की टीम किसी ओर के साथ बना दी गई। बाद में फिर से ज्वाला गुट्टा का साथ अश्विनी पोनप्पा को मिला और वर्ष 2014 के ग्लासगो में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने देश को रजत पदक दिलाया। इसके बाद उन्होंने 2015 में कनाडा ओपन वीमेन्स डब्ल्स का खिताब जीता। फिर 2016 के ओलंपिक्स में वे ज्वाला गुट्टा के सामने खड़ी हुईं, लेकिन दोनों में से कोई भी देश के लिए कोई खिताब नहीं जीत पाया।
अश्विनी पोनप्पा की संघर्ष की कहानी में काफी उतार-चढ़ाव हैं, जहां उन्हें कई बार हार का मुंह भी देखना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपनी उम्मीद को नहीं हारने दिया। वर्ष 2018 में ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कॉस्ट में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में वे भारत की मिक्स्ड टीम का हिस्सा बनी, जिसमें देश को स्वर्ण पदक हासिल हुआ। इसी के साथ इन्हीं खेलों में उन्होंने एन सिक्की रेड्डी के साथ वीमेन्स डब्ल्स भी खेला, जिसमें वे देश के लिए कांस्य पदक जीत पाईं।
उनकी निजी जिंदगी की बात करें तो वर्ष 2017 में उन्होंने एक कारोबारी और मॉडल रह चुके करन मेडप्पा से शादी कर ली।