पहले कोविड और अब लॉकडाउन, इन दोनों की वजह से मौजूदा समय में बच्चों खासतौर पर टीनएजर्स पर काफी असर हो रहा है। छोटे बच्चे जहां माता-पिता की बातों को मानते हुए उनके साथ घर में थोड़ा बहुत खेल भी लेते हैं, लेकिन टीनएजर्स में व्यवहार की दृष्टि से कई बदलाव हो रहे हैं, जिनकी वजह से वे गुस्सैल हो रहे हैं या फिर अकेले रहना पसंद कर रहे हैं।
एक तरफ जहां बच्चों के पास दूसरों से मिलने का कोई जरिया नहीं है, वहीं टीनएजर्स बच्चे घर में भी मौजूद परिवार के अन्य सदस्यों से दूरी को बढ़ाने में लगे हुए हैं। कई माता-पिता का मानना है कि उनके टीनएजर्स बच्चों के पास अब उनके लिए वक्त नहीं है या फिर वे उनके साथ समय नहीं बिताना चाहते। कई जगह तो बच्चे गैजेट्स में ही इतना व्यस्त हो गए हैं कि उन्हें कुछ और नहीं सूझता। यहां तक कि कुछ मामलों में बच्चों में भी अब संयम खत्म होता जा रहा है और अगर उन्हें रोका जाता है तो वे चिल्लाते या फिर गुस्सा करते हैं। आइए एक नजर डालते हैं टीनएजर्स पर पड़ रहे लॉकडाउन के अप्रत्यक्ष प्रभावों पर।
टीनएजर्स पर लॉकडाउन के विभिन्न असर
1. स्वभाव संबंधी बदलाव
लॉकडाउन एक ऐसी स्थिति है, जो बच्चों के लिए सही होती नहीं दिख रही। बच्चे न तो अपने स्कूल जा सकते हैं, न ही अपने दोस्तों से मिलने और न ही ट्यूशन क्लासेज के लिए। ऐसे में वे खुद को हर दम बंद-बंद महसूस कर रहे हैं। साथ ही चौबीसों घंटे माता-पिता की नजर बच्चों पर ही बनी हुई है। बात-बात पर वे बच्चे को टोक रहे हैं, जिसकी वजह से बच्चा भी अब माता-पिता को पलट गुस्से में जबाव देता है या फिर हर दम चिड़चिड़ा रहता है।
2. नींद के पैटर्न में बदलाव
बच्चों के साथ इस समय जो एक खास समस्या आ रही है, वह है उनकी नींद के पैटर्न में बदलाव। आप देख सकते हैं कि टीनएजर्स रात-रात भर अपने गैजेट्स पर रहते हैं और दिन में यहां तक कि कभी-कभी क्लास के समय में भी उंघने लगते हैं।
3. सामाजिक बदलाव
बच्चे दूसरों से कम से कम मिलना चाहते हैं। खासकर अगर बात उनके अपने परिवार के सदस्यों की है तो कई बच्चे अपने माता-पिता से भी पूरा दिन नहीं मिलते। यहां तक कि वे अपने मोबाइल फोन या गैजेट्स को लेकर अपने-अपने कमरों में चले जाते हैं और खुद को अपने कमरे में बंद ही कर लेते हैं। दरअसल बच्चे कुछ समय तक तो इस स्थिति के जल्दी से खत्म होने के बारे में उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन अब किसी भी हाल में उन्हें भी उम्मीद नहीं है, स्थिति के 2021 तक बेहतर होने की तो ऐसे में वे भी दूसरों से दूरी बना कर रहते हैं।
4. शारीरिक बदलाव
इस समय सबसे ज्यादा जो प्रभाव हम सभी देख सकते हैं, वह है शारीरिक बदलाव। लॉकडाउन की स्थिति में कुछ शारीरिक काम तो कर ही नहीं ऐसे में बच्चे काफी मोटे भी हो रहे हैं। इसी के साथ आप देखेंगे कि ऑनलाइन क्लासेज और उसके बाद के बढ़ते स्क्रीन टाइम की वजह से उनकी आंखें भी काफी खराब हो रही हैं।
5. तनाव बढ़ रहा है
हर समय माता-पिता की नजरों के बीच अपनी जिंदगी को जीने का भी बच्चों को काफी अधिक तनाव हो रहा है। इसके अलावा टीनएजर्स जो पहले अपने दोस्तों, अपने स्कूल में एक-दूसरे के साथ जहां अपने मनोभावों को व्यक्त कर देते थे। अब वे ऐसा भी नहीं कर पा रहे और न ही मैं माता-पिता को समझने की स्थिति में हैं, जिस वजह से उन्हें काफी अधिक तनाव हो रहा है।
6. बच्चों की निजता पर भी खतरा है
इस उम्र में कई बच्चों के एक-दूसरे पर क्रश या फिर रिश्ते भी होते हैं, जिन्हें लेकर टीनएजर्स काफी गंभीर हो जाते हैं। अब हर समय घर पर रहने की वजह से वे एक-दूसरे को मिल भी नहीं पा रहे और घर पर हर समय कोई न कोई उनके आगे-पीछे घूम रहा होता है। ऐसे में बच्चों को अपनी निजता पर भी खतरा दिख रहा है, जिसकी वजह से उनके व्यवहार में काफी बदलाव देखे जा सकते हैं।
7. बच्चे जल्दी बोर हो रहे हैं
बच्चे इस बात को माने या न मानें लेकिन गैजेट्स के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल की वजह से वे अब जल्दी-जल्दी बोर हो जाते हैं। बच्चे जो स्कूल में चल रही क्लास में पूरा ध्यान सिर्फ सुनने और समझने पर लगाते थे, वे बच्चे अब ऑनलाइन क्लासेज के दौरान शांत बैठे रहते हैं या फिर कुछ और देखना शुरू कर देते हैं। यहां तक कि कुछ बच्चे तो टीचर्स को यह कह कर भी अपनी क्लास छोड़ देते हैं कि इंटरनेट का नेटवर्क सही नहीं आ रहा।
इस समय टीनएजर बच्चों के साथ जो भी समस्याएं चल रही हैं, उन्हें भले बच्चे न समझ सकें, लेकिन माता-पिता को इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि वे अपने बच्चों को हर वक्त किसी निर्णायक की नजर से न देखें। उन्हें बच्चों को उनकी जगह, उनकी निजता देनी चाहिए। इससे और कुछ नहीं तो कम से कम बच्चे पर मानसिक तनाव जरूर कम होगा। आज से पहले न कभी हम और न ही कभी बच्चे इस आपदा से रू-ब-रू हुए हैं तो ऐसे में बच्चों को भी नहीं मालूम की वे कैसे इस स्थिति का समाना कर सकते हैं। आप उनकी मदद करें ताकि वे भी खुद को सहज महसूस कर सकें।
अनु गोयल (साइकोलॉजिस्ट एवं रिलेश्नशिप एक्सपर्ट) से बातचीत पर आधारित