कौन नहीं चाहेगा कि उसका बच्चा जिंदगीभर सेहतमंद रहे? बच्चों को सेहतमंद बनाने का सबसे बेहतर तरीका है कि उन्हें किसी न किसी खेल में या शारीरिक गतिविधि में लगाएं। माता-पिता के सहयोग और प्रोत्साहन के चलते इस बात की संभावना भी काफी होती है कि कोई बच्चा किसी खास खेल में आगे निकल जाए। लेकिन किस उम्र में बच्चों को किन खेलों या शारीरिक गतिविधियों से रू-ब-रू कराया जा सकता है। आइए जानते हैं।
सभी बच्चे स्वाभाविक तौर पर खिलाड़ी होते हैं। उनमें खेल का जज्बा होता है, बस जरूरत होती है उनका मार्गदर्शन करने की। समय के साथ बच्चों में खेल को सीखने समझने की शक्ति भी बढ़ जाती है और वे खुद किसी न किसी खेल में परिपक्व हो जाते हैं।
उम्र के अनुसार कैसे दें बच्चों को खेल का प्रशिक्षण:
उम्र 2 से 5 साल
छोटे बच्चे इस उम्र में अपनी बेसिक गतिविधियों जैसे कि तेज चलना, दौड़ना, कूदना, बैठना आदि को अच्छे से सीख रहे होते हैं। ऐसे में उनके लिए किसी भी प्रशिक्षण संबंधी खेल को सीखना काफी बड़ी चुनौती हो सकता है। इस उम्र में जो बच्चे किसी खास एक खेल में भाग लेते हैं, वे इनसे बहुत अधिक कुछ नहीं सीख सकते, खास कर बेहतर प्रदर्शन के बारे में।
इस उम्र के बच्चो को आजाद छोड़ते हुए उन्हें सभी खेलों के बारे में थोड़ा-थोड़ा बताया जाना चाहिए। साथ ही इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि अभी से बच्चे में स्टेमिना और स्ट्रेंथ पर पूरा ध्यान दिया जाए। इस उम्र के बच्चों को दौड़, कूदना, फेंकना और पकड़ना, तैराकी, साइकिल चलाना और किसी चीज पर चढ़ने का अच्छे से अभ्यास कराना चाहिए। इससे बच्चे में खेल के लिए जरूरी एकाग्रता और स्टेमिना दोनों ही बढ़ेंगे जो आगे उसके खेल को बेहतर बनाने में काम भी आएंगे।
उम्र 6 से 9 साल
जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, उनका खेल के प्रति लगाव, उनमें एकाग्रता और दिमाग और अंगों का तालमेल भी बेहतर होता है। जैसे कि आप देख सकते हैं कि इस उम्र के बच्चे आसानी से बेट पर आती बॉल का अंदाजा लगा सकते हैं। इस उम्र के बच्चे गति और दिशा की अवधारणा को भी बेहतर तरीके से समझ पाते हैं। ऐसे में आप इस उम्र के बच्चों को बेसबॉल, फुटबॉल, दौड़, जिमनेस्टिक्स, तैराकी, रस्सी कूदना, मार्शल आर्ट, टेनिस, तैराकी आदि जैसे खेलों की तरफ अग्रसर कर सकते हैं।
इस समय बच्चों में स्ट्रेंथ को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। साथ ही जो बच्चे किसी खास खेल को चुनते हैं, उन्हें खेल से जुड़ी तकनीकी बारिकियों को भी सीखाया जाता है।
उम्र 10 से 12 साल
इस उम्र में आते-आते बच्चों का खेल के प्रति नजरिया काफी साफ हो जाता है, साथ ही वे खेल की रणनीति को भी समझ पाने के काबिल हो जाते हैं। इस उम्र के बच्चों को खेल की जटिलताएं भी सीखाई जा सकती हैं। लेकिन प्रीटीन आयु की वजह से इस समय बच्चे के खेल पर उसके तालमेल पर भी कुछ समय के लिए प्रभाव हो सकता है। ऐसे में आपको बच्चे का पूरा साथ देना चाहिए। आप इस बात का पूरा ध्यान रखें कि आपका बच्चा जिस भी खेल में दिलचस्पी ले रहा हो, उसे उसकी सभी तकनीकी बारिकियां और दांव-पेंच ठीक तरह से आते हों। इस समय में आप अपने बच्चे के खेल को बेहतर बनाने के लिए उसे कोचिंग भी दिला सकते हैं।
खेल चुनने से पहले माता-पिता इन बातों का ध्यान रखें
बच्चों की दिलचस्पी बहुत जल्दी-जल्दी बदलती है। इसका कारण उनका आकर्षण है। वे बेहद जल्दी दूसरों से प्रभावित होकर किसी अन्य चीज के प्रति आकर्षित हो जाते हैं, इसलिए यह ख्याल रखना भी माता-पिता की जिम्मेदारी है कि उनका बच्चा अपने लिए सही खेल को चुन पाए।
- किसी भी खेल को चुनने से पहले आप बच्चे की आयु, उसमें परिपक्वता और उसके शारीरिक बल को जरूर ध्यान में रखें।
- क्या आपका बच्चा खेल की वजह से कहीं परेशान तो नहीं हो रहा या फिर खेल की वजह से उसे मानसिक दबाव तो नहीं हो रहा?
- क्या इस खेल को चुनने से आपके बच्चे में कौशल विकास तो सही होगा?
- किसी भी खेल को सीखने के लिए क्या आपके आस-पास जरूरी सुविधाएं जैसे कि खेल का मैदान, कोच आदि उपलब्ध हैं या नहीं?
- कहीं खेल की वजह से आपका बच्चा किसी दूसरी दिशा जैसे शैक्षिक, पारिवारिक या सामाजिक, में तो नहीं पिछड़ रहा।
- खेल की वजह से मेरा बच्चा और क्या-क्या सीख सकता है?
जहां एक तरफ खेल बच्चे की जिंदगी में शारीरिक तंदरुस्ती को बढ़ाते हैं, वहीं खेलों की ही वजह से बच्चों में एकाग्रता, टीम में खेलने की भावना, छोटी-छोटी चुनौतियों का सामना करने का आत्म-विश्वास और सही निर्णय लेने की कला का भी विकास होता है। खेल बच्चों को सिर्फ कुछ वर्षों के लिए नहीं, बल्कि पूरे जीवन के लिए काफी कुछ सीखा कर जाते हैं।