लगभग पिछले एक साल से बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं। बाहर खेल नहीं सकते, इसीलिए उनका खेल भी मोबाइल फोन या लैपटॉप तक ही सीमित रह गया हैं। घर में स्मार्ट फोन, स्मार्ट टीवी की वजह से भी बच्चे ऑनलाइन सामग्री के बहुत ज्यादा रू-ब-रू हो रहे हैं। ऐसे में एक ब्रेक तो बनता है। आप अपने बच्चों को ज्यादा नहीं तो सिर्फ एक सप्ताह के लिए ऑफलाइन होने को कहें, जिससे आप उनके व्यवहार और उनकी निर्णय लेने की क्षमता को और बेहतर तरीके से जान पाएंगे।
बच्चों को चाहे ऑनलाइन क्लास लेनी हो या फिर अपना कोई प्रोजेक्ट पूरा करना हो, वे झट से मोबाइल फोन या लैपटॉप हाथ में ले लेते हैं। निश्चित तौर पर ऑनलाइन काफी सामग्री उपलब्ध है जो बच्चों की उनके कामों में काफी मदद कर सकती है। पर हकीकत कुछ और ही है। ऑनलाइन होने पर बच्चों का प्रदर्शन पहले से भी ज्यादा खराब होने लगा है। उसकी वजह है ऑनलाइन इतना कुछ देखने-करने को होता है कि बच्चे मुख्य मुद्दे से भटकर बेकार की चीजों में अपना समय गंवाने लगते हैं।
आज जहां लगभग हर काम के लिए हम ऑनलाइन रहते हैं या फिर इंटरनेट पर निर्भर करते हैं, वहीं कुछ दिनों के लिए इसे छोड़ना काफी चुनौतीभरा हो सकता है, लेकिन इससे आपके बच्चे समय का सही इस्तेमाल करना, अपनी समस्याओं के लिए खुद हल की खोज करना या फिर अपने प्रश्नों के उत्तर के लिए किताबें पढ़ना आदि सीख सकते हैं। तो क्यों न अपने बच्चों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक विकास के लिए एक सप्ताह के लिए ही सही उन्हें ऑफलाइन होने के फायदे बताए जाएं।
ऑफलाइन रहने के फायदे
1. ऑफलाइन रहने के शारीरिक फायदे
- मोटापा घटता है
ऑनलाइन आप कितने भी घंटे व्यतीत कर सकते हैं। वहां हर दम कुछ न कुछ आता ही चलता ही रहता है जो बच्चों को व्यस्त रखता है। यही वजह है कि आजकल बच्चों का शारीरिक श्रम कम हो गया है और उनमें मोटापे की समस्या अधिक देखी जा सकती है। वहीं ऑफलाइन या सामान्य जिंदगी व्यतीत करने पर बच्चे खेल-कूद में भाग लेंगे, जिससे उनके मोटे होने की आशंका कम हो जाती है।
- शारीरिक तौर पर तंदरुस्त
जो बच्चे अधिक से अधिक समय सिर्फ मोबाइल फोन, लैपटॉप या स्मार्ट टीवी को देखते हुए सोफे पर बिताएंगे तो वे शारीरिक तौर पर सक्रिय नहीं रह पाते। ऐसे में उनके शरीर में ताकत नहीं रहेगी और वे कमजोर हो जाते हैं। वहीं दूसरी और गैजेट्स से दूरी बच्चों को फिट रहने में मदद करती है।
2. ऑफलाइन रहने के मानसिक फायदे
- तनाव में कमी
गैजेट्स और इंटरनेट बच्चों दिमाग को शांति से बैठने नहीं देता। सोशल मीडिया साइट्स की वजह से बच्चे एक अनदेखी प्रतिस्पर्धा का शिकार हो जाते हैं। जहां अपनी छवि को बेहतर बनाना की कोशिश और ऑनलाइन बुलिंग या प्रताड़ना के चलते बच्चे अक्सर कम उम्र में ही तनाव का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में जब इन चीजों से दूरी बनेगी तो तनाव भी बच्चों से दूर रहेगा।
- बेचैनी में कमी
मोबाइल फोन अगर आपके सामने भी बंद पढ़ा है तो भी अक्सर आप उसे बार-बार उठाकर खोल कर देखते हैं कि कहीं किसी का कोई मैसेज तो नहीं आया, आपकी तस्वीर पर कितने लोगों ने लाइक किया है, आपका दोस्त कब, कहां और किसके साथ गया है आदि। इन सब चीजों की बेचैनी आपके चेहरे पर साफ दिखाई देती है। जब ऑनलाइन होने से बड़ों को इतनी बेचैनी होती है तो सोचिए कि कम उम्र के बच्चों पर इसका क्या प्रभाव होता होगा?
- नींद में सुधार
विशेषज्ञ भी मानते हैं और विज्ञान ने यह प्रमाणित भी किया है कि सोते समय गैजेट्स आपके जितने पास रहेंगे आपकी नींद उतनी ही खराब होगी। जहां 11 से 14 साल तक के बच्चों को भी दिनभर में 2 से 3 घंटे के ही स्क्रीन टाइम की सिफारिश की गई है, वहां ऐसे में दिन तो छोड़िए रात को भी सोते समय तक मोबाइल फोन की चमकती रोशनी का बच्चों की नींद पर क्या असर होता होगा। यही वजह है कि बच्चों की नींद या तो पूरी नहीं होती या फिर वे नींद की गुणवत्ता में कमी का शिकार होते हैं।
- बच्चे खुश रहते हैं
जो बच्चे ताजी हवा में बाहर निकलते हैं, उनके शरीर में डोपामाइन (Dopamine) और एन्डोर्फिन (endorphin) नामक हॉर्मोन्स बनते हैं जो उन्हें खुश होने का एहसास कराते हैं। वहीं ऑनलाइन समय बिताने वाले बच्चों में तनाव का स्तर बढ़ाने वाले कारक अधिक सक्रिय हो जाते हैं।
3. सामाजिक कौशल बेहतर होता है
- बच्चे बातचीत करना सीखते हैं
कई अध्ययनों में पाया गया है कि जो बच्चे अपने दोस्तों के साथ अधिक समय बिताते हैं, उनमें बातचीत की कला विकास बेहतर और जल्दी होता है, बनिस्बत उनके जो अपने घर या कमरे में अकेले मोबाइल फोन के सहारे नर्सरी की कविताएं सुनते हैं।
- बच्चों के दोस्त जल्दी बनते हैं
ऑनलाइन रहने से ज्यादातर बच्चे एक तरफा संचार का ही हिस्सा बनते हैं। ऑनलाइन बच्चा कुछ भी चाह कर नहीं कर सकता। वह उतना ही जानता या सुनता है, जितना सामने ऑनलाइन सामग्री में आता है। वहीं जो बच्चे बाहर अधिक समय बिताते हैं, वे आसानी से अपने दोस्त बना लेते हैं।
- बच्चे दूसरों से चीजों को साझा करना सीखते है
ऑनलाइन रहने से बच्चे सिर्फ अपने बारे में सोच पाते हैं या कहें कि वे खुद ही अपनी सोच के केंद्र में रहते हैं और वे नहीं सीख पाते कि उन्हें दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। ऐसे बच्चे आमतौर पर खुद को अधिक असुरक्षित महसूस करते हैं, इसीलिए वे दूसरों के साथ चीजों को नहीं बांट पाते। वहीं इसके विपरीत दूसरे बच्चे अन्य बच्चों के साथ अपने संबंधों को काफी बेहतर बनाने में कामयाब हो जाते हैं।
4. समय का बेहतर प्रबंधन कर पाते हैं
छोटे बच्चों को नहीं पता होता कि उन्हें कितना समय किस चीज को देना चाहिए। उनके लिए मनोरंजन सर्वोपरि हो जाता है। वहीं आप देखेंगे कि ऑनलाइन रहने वाले बच्चे अपने समय का सही उपयोग ही नहीं कर पाते, क्योंकि उन्हें एक के बाद दूसरी चीज देखते हुए समय का आभास ही नहीं होता। इसकी जगह आप देख सकते हैं कि जो बच्चे बेहद कम समय ऑनलाइन रहते हैं या ऑनलाइन होते ही नहीं हैं वे अपना कितना समय रोज बर्बाद होने से बचा लेते हैं।
ऐसे बच्चे दिन में पढ़ाई करने के अलावा, खेलने, रचनात्मक काम करने और अपने माता-पिता को घर के कामों में मदद करने में बिताते हैं।
5. बच्चों का प्रदर्शन बेहतर होता है
ऑनलाइन रहने वाले बच्चे अपने काम पर कभी पूरी तरह से ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते, फिर चाहे वे अपने किसी प्रोजेक्ट के लिए ही क्यों न सामग्री की तलाश कर रहे हों। ऐसे बच्चे होमवर्क करते समय भी सोशल मीडिया साइट्स को बार-बार टटोलते हैं या फिर कोई भी मनोरंजक सामग्री मिलने पर अपने काम से ध्यान खो बैठते हैं। वहीं दूसरे बच्चे आराम से अपना पूरा समय और ध्यान अपने काम पर लगाते हैं, जिससे उनका प्रदर्शन भी बेहतर होता है।
हो सकता है कि आपके बच्चे के लिए एक सप्ताह के लिए ऑफलाइन होना आसान न हो। पर जब वे इसके इतने फायदों के बारे में जानेंगे तो हो सकता है कि वे भी अपनी उस तकलीफ को सहने के लिए तैयार हो जाएं। बच्चों की परेशानी में आप उन्हें सही राह चुनने के लिए प्रोत्साहित करें। इस उम्र में बहुत जरूरी है कि बच्चे अपनी एकाग्रता और समय पर जोर दें।